प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, June 26, 2010

दीनदयाल शर्मा की तीन बाल कवितायेँ

उल्लू

उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अँधियारा ।
लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
तीन लोक की सैर कराए ।

हलधर का यह साथ निभाता,
चूहों को यह चट कर जाता ।
पुतली को ज्यादा फैलाए,
दूर-दूर इसको दिख जाए ।

पीछे भी यह देखे पूरा,
इसको पकड़ न पाए जमूरा ।
जग में सभी जगह मिल जाता,
गिनती में यह घटता जाता ।

ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहाँ गए उल्लू नादान।।

प्यारा कुत्ता

मेरा प्यारा कुत्ता कालू ।
बालों से लगता है भालू ।।

प्यार करे तो पूँछ हिलाए ।
पैरों में लमलेट हो जाए ।।

दिन में सोता रहता हरदम ।
पूरी रात न लेता है दम ।।

खड़के से चौकस हो जाए ।
इधर-उधर नजरें दौड़ाए ।।

चोरों पर यह पड़ता भारी ।
सच्ची सजग है चौकीदारी ।।

मधुमक्खी

मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम ।
मेहनत से न डरती हो तुम ।।

फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।

भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।

वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।

ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।





Wednesday, June 23, 2010

बूझो तो जाने - 2 / दीनदयाल शर्मा





बूझो तो जाने - 2  / दीनदयाल शर्मा

बड़े हों या छोटे...पहेलियाँ सबको अच्छी लगती है.... मैं अपनी बनाई यहाँ 15 पहेलियाँ दे रहा हूँ...आप   इन सभी 15  पहेलियों में से कृपया एक या दो पहेली का  अर्थ बताएं...आपके बताये उत्तर  सभी उत्तरदाताओं का ज्ञान बढ़ाएंगे...साथ में रोचकता भी बनी रहेगी...आपके उत्तर की प्रतीक्षा है...आपका शुभेच्छु....दीनदयाल शर्मा 


1.
करो या मरो नारा जिनका,
पहनी हरदम खादी ।
आज़ादी की ख़ातिर जिसने,
अपनी जान गँवा दी ।।

2.
छोटे क़द का बड़ा आदमी,
जीवन सीधा-सादा।
बचपन से ही संघर्षशील था,
उनका अटल इरादा ।।

3.
माँ स्वरूप रानी थी जिनकी,
पिता थे मोतीलाल ।
फूल गुलाब का जिन्हें प्रिय था,
प्यारे बाल गोपाल ।।

4.
अधिकारों का हक़ है जन्मसिद्ध,
लेंगे हम आज़ादी।
जन-जन में यह अलख जगाई
लाल-पाल का साथी।।

5.
विद्यावती माता थी जिनकी,
किशनसिंह पिता किसान ।
वीर भगत भारत माता का,
हँस कर हुआ कुरबान ।।



6.
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा
सभी जगह सम्मान यह पाए ।
पतली सी है काया जिसकी,
जलती हुई महक फैलाए ।

7.
अलग - अलग रहती है दोनों
नाम एक सा प्यारा
एक महक फैलाए जग में,
दूजी करे उजियारा ।

8.
दिन-रात मैं चलती रहती,
ना लेती थकने का नाम ।
जब भी पूछो समय बताती,
देती बढ़ने का पैगाम ।

9.
जैसे हो तुम दिखोगे वैसे
मेरे भीतर झाँको,
झट से दे दो उत्तर इसका
खुद को कम ना आँको ।

10.
तमिलनाडु, दक्षिण भारत के
वैज्ञानिक ने किया कमाल ।
अग्नि और पृथ्वी मिसाइल
जिनकी देखो ठोस मिसाल ।



11.
टर्र - टर्र जो टर्राते हैं
जैसे गीत सुनाते,
जब ये जल में तैरा करते
पग पतवार बनाते।

12.
चर-चर करती शोर मचाती
पेड़ों पर चढ़ जाती,
काली पत्तियां तीन पीठ पर
कुतर-कुतर फल खाती।

13.
छोटे तन में गाँठ लगी है
करे जो दिन भर काम,
आपस में जो हिलमिल रहती
नहीं करती आराम।

14.
पानी में ख़ुश रहता हरदम
धीमी जिसकी चाल,
ख़तरा पाकर सिमट जाए झट
बन जाता खुद ढाल।

15.
छत से लटकी मिल जाती है
अठ पग वाली नार,
बुने लार से मलमल जैसे
कपड़े जालीदार।

Friday, June 18, 2010

बूझो तो जाने / दीनदयाल शर्मा

बड़े हों या छोटे...पहेलियाँ सबको अच्छी लगती है...पंजाब की डॉ. हरदीप संधू..ने अपने ब्लॉग  शब्दों का उजाला  में पहेलियाँ दे रखी हैं...जो बहुत ही रोचक हैं...उनकी प्रेरणा से मैं अपनी बनाई पहेलियाँ यहाँ दे रहा हूँ...आप   इन सभी बीस पहेलियों के अर्थ बताएं...आपके बताये उत्तर  सभी का ज्ञान बढ़ाएंगे...साथ में रोचकता भी बनी रहेगी...आपके उत्तर की प्रतीक्षा है...आपका शुभेच्छु....दीनदयाल शर्मा 



1.
फ़िल्में, गीत, ख़बर और नाटक
रोज़ हमें दिखलाता ।
सीसे का छोटा सा बक्सा,
बोलो क्या कहलाता ?

2.
ठंडी-ठंडी दूध और जल से,
जमी है चपटी-गोल ।
सारे बालक मचल उठें सुन,
इसके मीठे बोल ।।

3.
अफ़सर, नेता सबको भाती,
चौपाई बिन प्राण ।
उसको पाने की ख़ातिर सब,
अपने हैं अनजान ।।

4.
तिल-तिल करके जलती है जो,
फैलाती उजियारा ।
उसके मिट जाने से मिटता,
भीतर का अँधियारा ।।

5.
चरणों में जो रहता हरदम,
सेवक सीधा-सादा।
बदमाशों का करे ख़ातमा,
दादों का भी दादा।।

6.
दबे पाँव जो घर में आती,
दूध मलाई चट कर जाती ।
म्याऊँ-म्याऊँ करती है जब,
चूहों में भगदड़ मच जाती ।।

7. 
ढेरों शब्द संजोए जिसमें,
सबके अर्थ अनेक ।
सब भाषाओं में मिलती है,
दुनिया में अतिरेक ।।

8.
'चाय' शब्द के भीतर दिखती,
और दिखूँ 'बिग-बी' के साथ ।
घर का पहरेदार पति है,
मेरी आज्ञा से तैनात ।।

9.
दिखने में छोटी सी होती,
गज़ब भरा है ज्ञान ।
पढ़कर इसको बन सकते हम,
बहुत बड़े विद्वान ।।

10.

टी०वी० से पहले थे जिसके,
सारे लोग दीवाने ।
हर घर में शोभा थी जिससे,
सुनते ख़बरें गाने ।।

11.
खड़ा-खड़ा जो सेवा करता,
सबका जीवनदाता ।
बिन जिसके न बादल आएँ,
बोलो क्या कहलाता ?

12.
ऊँचा-ऊँचा जो उड़े,
न बादल न चील ।
कभी डोर उसकी खिंचे,
कभी पेच में ढील ।।

13.
रंग-रंगीला रूप है जिसका,
फूलों पर मँडराती ।
पंख हिलाती प्यार बाँटती,
सबका मन बहलाती ।।

14.
सारा तन बालों से ढकता,
नाच तुम्हें दिखलाए ।
शहद मिले तो पेड़ों पर वह
उल्टा ही चढ़ जाए ।।

15.
दुपहिया पतली सी गाड़ी,
प्रदूषण से दूर है ।
तन को कसरत करवाती है,
इस पर हमें गरूर है ।।

16.
आज़ादी का अमर सिपाही,
ख़ुद को गोली मारी ।
अँग्रेज़ों के हाथ न आया,
आज़ादी थी प्यारी ।।

17.
नारी के कल्याण की खातिर,
जग में जोत जगाई ।
ब्रह्म समाज थरपाया जिसने,
चेतनता फैलाई ।।

18.
अटल खड़े हैं सरहद पर जो,
देश के पहरेदार ।
जंग छिड़े तो हो जाते हैं
भिड़ने को तैयार ।।

19.
भारत देश की शान है जिससे,
तीन रंगों का प्यारा ।
नीले रंग का चक्र बीच में,
सबकी आँख का तारा ।।

20.
गोल-गोल अग्नि का गोला,
कहलाता जो तारा ।
उसके दिखने से होता है,
हर घर में उजियारा ।।

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