प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, August 27, 2010

दीनदयाल शर्मा की एक ख़ास बाल कविता - शिकायत

शिकायत / दीनदयाल शर्मा 

पांच बरस की बेटी 
मानसी 
न जाने क्यों नाराज़ है
घर के एक कोने में 
खड़ी
मुझे देखते ही 
फूट पड़ी
पापा, 
अपनी पत्नी  को समझा लो, 
मुझे मारती रहती है
घर घर खेलती हूँ 
तो कहती है पढ़
चित्र बनाती हूँ 
तो कहती है पढ़
किसी से बात  करती हूँ 
तो कहती है पढ़
कहानी सुनाने को 
कहती हूँ 
तो कहती है पढ़
सारा दिन पढ़ पढ़ ही
क्यों कहती है मम्मी
मुझसे बात क्यों नहीं करती है 
मम्मी
मेरी इससे कुट्टी है
मैं नहीं कहती इसको मम्मी 
समझालो अपनी पत्नी को 
में  नहीं  हूँ 
इनकी बेटी...

विशेष : 11 मार्च 2005 को  सांय : 4 :35 पर " राज्य संदर्भ केंद्र, जयपुर " में फ़ुरसत के क्षणों में सृजित कविता 'शिकायत '

Sunday, August 22, 2010

दीनदयाल शर्मा की कविता

ओ चिड़िया 
ओ चिड़िया तुम कितनी प्यारी ।
साधारण-सी शक्ल तुम्हारी ।।

चीं-चीं कर आँगन में आतीं ।
सब बच्चों के मन को भातीं ।।

भोली और लगतीं मासूम ।
जी करता तुमको लूँ चूम ।।

भाँति-भाँति के न्यारे-न्यारे ।
जीव-जंतु जहाँ रहते हैं सारे ।।

आपका घर हम सबको भाए 
तभी तो चिड़िया घर कहलाए 

Sunday, August 15, 2010

मन / दीनदयाल शर्मा



मन खुशियों से लहराया 


मन चंचल काबू से बाहर 
मन को कैसे पकडूं मैं ,
मन पल में भग जाये  कहीं पर 
मन को कैसे जकडूँ मैं ,

मन मारूं ना मन की मानूं   
मन को मैंने समझ लिया,
मन से प्रीत लगाली मैंने 
मीत बना कर जकड़ लिया,

मन को जीता जग को जीता
मन खुशियों से लहराया, 
जग जाहिर करता मैं खुशियाँ 
घर पे तिरंगा फहराया...

दीनदयाल शर्मा , हनुमानगढ़ जं. 
मोबाइल : 09414514666 

Saturday, August 14, 2010

2 शिशु कवितायेँ / दीनदयाल शर्मा

हाथी
हाथी आया हाथी आया
काला-काला हाथी आया।

सूंड हिलाता हाथी आया
कान हिलाता हाथी आया।

कितना मोटा ताज़ा है ये
इसकी थुलथुल-सी है काया।


कुत्ता
कुत्ता आया कुत्ता आया
भों-भों करता कुत्ता आया।

मेरे घर का रखवाला है
हम बच्चों के मन को भाया।

घर से बाहर घूमने जाऊँ
बना रहे यह मेरा साया।



Tuesday, August 10, 2010

दीनदयाल शर्मा की 2 शिशु कवितायेँ



चूहा
चूहा आया, चूहा आया,
चूँ-चूँ करता चूहा आया।

पूँछ हिलाता चूहा आया
मूँछ हिलाता चूहा आया।

देखो वह कितना फुर्तीला
कोई उसको पकड़ न पाया।



बिल्ली
बिल्ली आई, बिल्ली आई,
पूँछ हिलाती बिल्ली आई।

देखो दीदी! देखो भाई!
मूँछ हिलाती बिल्ली आई।

चुपके चुपके बिल्ली आई,
खा गई सारी रस मलाई।


Thursday, August 5, 2010

दीनदयाल शर्मा की पांच शिशु कवितायेँ

मुर्गा

कुकडू कूँ 
मुर्गे की बांग
आलस को 
खूँटी पर टांग।




तोता


टिऊ-टिऊ 
जब तोता बोला
पिंकी ने 
पिंजरे को खोला।




मोर


पिकोक-पिकोक 
बोला मोर
नहीं करेंगे 
कभी भी शोर।




कबूतर


गुटर गूँ जब 
करे कबूतर
प्रश्न हमारे 
आपके उत्तर।




चिड़िया


चीं-चीं करके
चिड़िया चहकी
वातावरण में 
ख़ुशबू महकी।


Monday, August 2, 2010

नानी तूं है कैसी नानी / दीनदयाल शर्मा

नानी तूं है कैसी नानी
नहीं सुनाती नई कहानी।

नानी बोली प्यारे नाती
नई कहानी मुझे न आती।

मेरे पास तो वही कहानी
एक था राजा एक थी रानी।

नई बातें कहाँ से लाऊँ
तेरा मन कैसे बहलाऊँ।

तुम जानो कम्प्यूटर बानी
तुम हो ज्ञानी के भी ज्ञानी।

मैं तो हूँ बस तेरी नानी।
तुम्हीं सुनाओ कोई कहानी।।


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