प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Monday, June 27, 2011

मुर्गे की सीख / दीनदयाल शर्मा



मुर्गे की सीख 

मुर्गा बोला नहीं जगाता
अब तुम जागो अपने आप ।
कितनी घड़ियाँ और मोबाइल
रखते हो तुम अनाप-शनाप ।

मैं भी जगता मोबाइल से
तुम्हें जगाना मुश्किल है
कब से जगा रहा हूँ तुमको
तू क्या मेरा मुवक्किल है ।

समय पे सोना, समय पे जगना
जो भी करेगा समय पे काम
समय बड़ा बलवान जगत में
समय करेगा उसका नाम ।
दीनदयाल शर्मा


Wednesday, June 22, 2011

उदासी का कारण / दीनदयाल शर्मा


उदासी का कारण
पेड़ की उदासी देखकर लता ने उससे पूछा-'आज आप बहुत उदास हैं! क्या बात है साथी, बताओ ना !' पेड़ गंभीर होकर  बोला- सामने वाले लेखक का लड़का भी लिखने लग गया।
'तो इसमें गंभीर होने की क्या बात है! तुम्हें तो खुश होना चाहिए।' लता ने इठलाकर कहा। 
पेड़ लंबी सांस लेकर बोला-'यह भी अपने बाप की तरह कचरा लिखता है और इसे भी $िकताबें छपवाने की भूख है।'
'तो फिर तुम्हारा क्या लेता है!' लता बोली।
'तुम नहीं जानती लता....जब $िकताबें छपती हैं तो हमें बलिदान  देना पड़ता है।'

दीनदयाल शर्मा, 10/22 आर.एच.बी. कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
0914514666, 09509542303

Monday, June 20, 2011

मधुमक्खी / दीनदयाल शर्मा

मधुमक्खी / दीनदयाल शर्मा

मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम ।
मेहनत से न डरती हो तुम ।।

फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।

भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।

वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।

ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।

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