प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, July 23, 2011

राजस्थानी में 2 बाल संस्मरण: दीनदयाल शर्मा


राजस्थानी में 2 बाल संस्मरण: दीनदयाल शर्मा

मानसी रौ कुत्तौ

एक  दिन दो'पारै घर रै आगै एक  कुत्तौ आयौ। सालेक को हौ...रंग में काळौ अर शरीर में  पतळौ सो...भगवान जाणै कोई बीं'नै छोडग्यौ कै बौ' आपरी मरजी सूं  आयौ...म्हे बीं'नै  देख्यौ... तो म्हानै देखतांईं बौ' आपरी पूँछ हलाण लागग्यौ....म्हूं  बीं'नै रोटी घाली...बौ' चपर-चपर खा ग्यौ। ईंयां लागै हो जाणै बौ' दो-दिनां सूं भूखौ हो...रोटी खा'र बण पूंछ हला-हला'र म्हानै धन्यवाद दियौ...पछै बौ' पूंछ हलावंतौ-हलावंतौ घर रै आगै ई बैठग्यौ। 
म्हूं  घर सूं  जद कदी बारै जांवतौ या फेर घरां आंवतौ तो आपरी पूंछ हला'र आपरौ प्रेम जतावंतौ...बीं'रौ सुभाव देख'र म्हे बीं'रौ नामकरण भी कर दियौ...अर नाम राख्यौ काळू....। अब म्हे सगळा बीं'नै रोटी सारू काळू-काळू कै'र हेलौ मारता तो बौ' पूंछ हलांवतौ-हलांवतौ म्हारा किलोळिया करतौ....कदी आपरा आगला पग म्हारी छाती माथै राख देंवतौ...तो कदी पगां में लिट ज्यांवतौ...म्हूं  बीं'नै मिट्ठी धमकी देंवतौ....पण बौ' चोखी तरियां समझै औ कै म्हूं  बीं'नै कीं नीं कै'वूं ला। बस बौ' आपरौ पूँछ हला'र प्यार दिखांवतौ। 
काळू अब सगळां रौ लाडलौ होग्यौ। पण मानसी नै बौ' सें' सूं  बेसी आछौ लागतौ। मानसी पूरै मौलै में डूंडी  पीट दी कै बां' एक  कुत्तौ पाळ्यौ है अर बीं'रौ नांव काळू है...दिन रात अबै काळू घर रै आगै ई बैठ्यौ रै'तौ। मौ'लै आळा नै ई पतौ लागग्यौ कै औ' कुत्तौ मानसी रौ है। काळू धीरै-धीरै मौ'लै में सगळां सूं  घुळमिल ग्यौ। मानसी दिनुगै - आथणगै जद भी रोटी खांवती....काळू नै रोटी देवणौ नीं भूलती..। बीं'नै रोटी ख्वायां पछै खुद रोटी खांवती...।

काळू सारू सुवाटर

बरस 2006 री बात है। एक  दिन सिंझ्या रै टैम म्हूं  बजार सूं  आयौ...तो देख्यौ कै मानसी घर रै आगै खड़ी काळू कुत्तै नै रोटी नाखै ई। मन्नै देख'र काळू रोटी खांवतै-खांवतै ई पूंछ हलाई। म्हूं  भी बीं'नै लाड सूं बुचकार्यौ...अर स्कूटर घर रै भीतर राखण लाग्यौ। मानसी मेरै लेरै लेरै आ'र होळै सी बोली-'पापा, आज पाळौ कित्तौ घणौ है।'
'पाळै में ध्यान राखे कर बेटा।'
'म्हूं  तो ध्यान राखूं ...।' पछै बा'भर्योड़ै गळै स्यूं बोली-'पापा, ईं काळू नै पाळौ कोनी लागै के?'
'पाळौ तो सबनै ई लागै बेटा..।'
'तो इण रौ ध्यान कुण राखसी? इणनै गाभा कुण परा'वैगौ...। पापा, मे'रली सुवाटर इन्नै परा'द्यौ नीं।'
'वा अ बावळी...काळू नै सुवाटर परा'द्यां..लोग कै कै'वैगा..कै मास्टरजी रौ दिमाक खराब होग्यौ दिसै..। आपणै माथै सगळा हांसैगा बेटा।'
'तो.?' मानसी तो कै'र रोण लाग्गी। 
'वा ए'  मानसी बेटा, ईंयां रोये  करै के? देख मेरी बात सुण...कुत्तै रै शरीर माथै कित्ता बाळ है..आपणै ईंयां है के?'
'नां भी।' बण नाड़ हला'र कै'यौ।
'जिनावरां नै भगवान शक्ति दे राखी है...आपांनै जिंयां पाळौ लागै...बियां आ'नै कोनी लागै बेटा..। सै'र में कित्ता जिनावर है ...गा, गोधा, कुत्ता, सूरड़ा..ए  सगळा कोई 
गाभा थोड़ा ई पै'रै...!'
'पापा, इणनै मांय घर रै भीतर लेल्यौ..।'
'घर रै मांय...?'
'हां..।'
'घर में औ' कठै बैठसी..? गेलरी में तो स्कूटर है..। तूं बता...कठै रै'सी? तेरी मम्मी इण नै घर में राख लेसी के? तूं  ईंरी इत्ती चिंत्या ना कर। आपां रात नै सोंवती टैम ईंरै माथै कोई बोरी या खाइयौ नाख देस्यां..। ठीक है नीं? पछै गळी रा बाकि कुत्ता भी तो है..बां'नै...?' अर मानसी पछै मानगी।

दीनदयाल शर्मा 
10 / 22 आर.एच.बी.कॉलोनी,
हनुमानगढ़ जं. - ३३५५१२

'बालपनै री बातां'  लेखक - दीनदयाल शर्मा री पोथी सूं 

Saturday, July 16, 2011

सम्मान बहुत से पाओ / डॉ.विद्यासागर शर्मा


सम्मान बहुत से पाओ

दीनदयाल प्रसिद्ध बड़े हैं, लिखा बाल साहित्य।
पुस्तक कई लिखी हैं अब भी लिखते रहते नित्य।।

'टाबर टोळी' पाक्षिक इनका बच्चों को अति भाये।
स्तंभ बड़े रोचक हैं जिसके सबका ज्ञान बढ़ाये।।

कवि सम्मेलन में जब जाते, सबको खूब हँसाते।
काव्य-लतीफे सुनकर श्रोता लोटपोट हो जाते।।

डुक के हास्य व्यंग्य से सम्मोहित होता हर श्रोता।
नाटक एकांकी का अभिनय भी स्कूलों में होता।।

बालक जगिया पात्र तुम्हारा, है भोला पर प्यारा।
आम घरों के जीवन का इसमें है चित्रण न्यारा।।

राष्ट्रपति के सम्मुख लेकर, 'ड्रीम्स' गए थे अपने।
भावी भारत के इसमें हैं, बालमनों के सपने।।

पुरस्कार-सम्मान मिले, भारत के हर कोने से।
समारोह-सम्मेलन शोभित तव शामिल होने से।।

विनय यही ईश्वर से तुम बस यंू ही लिखते जाओ।
दीर्घायु अरू स्वस्थ रहो, सम्मान बहुत से पाओ।।

डॉ.विद्यासागर शर्मा
4-एफ-17, जवाहरनगर,
श्रीगंगानगर, राजस्थान
मोबाइल: 09414329434

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