प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, May 20, 2012

मासूम सवाल 

जब भी बाँधता  हूँ.
तश्में जूतों के
बेटी मानसी 
आ जाती है नज़दीक
कभी दबे पांव 
तो कभी भाग कर
पापा, बाज़ार से 
क्या लाओगे मेरे लिए.?

तुम बताओ क्या लाऊं 
प्रत्त्युत्तर में 
उसी से करता हूँ सवाल 
और लाड करता हुआ 
बांहों में 
भर लेता हूँ उसे..

वह कहती -
केला, सेब, चीकू , पपीता, अनार
और काले वाले अंगूर भी..

अनार ज़रूर लाना पापा 
भूल मत जाना

में अक्सर भूल जाता हूँ
दुकान बंद थी बेटा
कह कर 
काम में व्यस्त हो जाता हूँ

सुनकर  वह भी
हो जाती चुप
और चली जाती खेलने बाहर
सखी सहेलियों के संग..

कई बार 
सब्जी वाले की दुकान पर
जब भी
रुकता हूँ
मानसी की मांग
बार - बार गूंजती है 
कानों में 
फिर एक - एक चीज के 
भाव पूछता हूँ..
दो एक चीज 
तुलवा लेता हूँ
महंगाई की मार से 
अनार फिर रह जाता है

अनार नहीं लाये पापा ?
कानों में टकराता है
मासूम सा एक सवाल

दुकान पर था ही नहीं बेटा
सहज ही कह जाता हूँ
अब तो
हिचकता भी नहीं हूँ
आदत जो हो गई है
पर अकेला बैठा 
कई बात सोचता हूँ
कि अब 
जब भी बाहर जाऊंगा
मानसी के लिए
अनार जरूर लाऊंगा

पर भीतर ही भीतर 
मन कचोटता है
अपने आप को 
तराजू पर तोलता है
कि सच का हामी 
आखिर 
झूठ क्यों बोलता है..?
-दीनदयाल शर्मा

11 - 3 - 2005  को एस. आर . सी. जयपुर में लिखी कविता..
शाम : 4 :00 बजे..मेरी डायरी के पन्नों से 

 

 

Wednesday, May 9, 2012

Notice banaam Sampadak, Rajasthan Patrika

Bhle hi koi kitna bada kyo na ho...Mujhe nyaay chahiye...

Deendayal Sharma

Monday, May 7, 2012

Deendayal Sharma's Caricature by Raj Bhagat

Baal Sahityakar Deendayal Sharma's Caricature

by

Cartoonist .....

Raj Bhagat, Jammu & Kashmir

Saturday, May 5, 2012

Deendayal Sharma's Caricature

Deendayal Sharma's Caricature
by Raj Bhagt, Jammu & Kasmir

April 2012

Thursday, May 3, 2012

किताब

सुख - दुःख में साथ,
निभाती रही किताब

बुझे मन की बाती,
जलाती रही किताब

जब कभी लगी प्यास,
बुझाती रही किताब

मन जब हुआ उदास,
हँसाती रही किताब

अँधेरे में भी राह,
दिखाती रही किताब

अनगिनत खुशियाँ,
लुटाती रही किताब..

- दीनदयाल शर्मा  


शेर

शेर दहाड़ा खूब जोर से,
अपना बल दिखलाया
सुनी दहाड़ सब जीवों ने, तब
सबका दिल घबराया.
थर थर लगे कांपने सारे,
सामने कोई न आया
अपनी ताकत के बल पर , वह
वन राजा कहलाया..

- दीनदयाल शर्मा  


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