Saturday, February 5, 2022
Sunday, December 20, 2020
बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जन्म: 15 जुलाई 1956 (प्रमाण पत्र के अनुसार), गणगौर की तीज विक्रम संवत् 2013
जन्म स्थान: गांव- जसाना, तहसील- नोहर, जिला- हनुमानगढ़ (राज.)
शिक्षा: एम. कॉम. (व्यावसायिक प्रशासन, 1981)=सी.लिब. साइन्स 1982, पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, 1985),स्काउट मास्टर बेसिक कोर्स (1990)
लेखन: हिन्दी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में 1975 से सतत साहित्य सृजन।
मूल विधा : बाल साहित्य।
वर्तमान निवास : टाबर टोली हाउस, 10/22 हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, हनुमानगढ़ जं. 335512,राजस्थान।
मोबाइल नंबर: 94145 14666, 86193 28456
E mail : deen.taabar@gmail.com
कुल लिखित एवं प्रकाशित पुस्तकें : 49 पुस्तकें। (सन् 1987 से 2020 तक)
प्रकाशित हिन्दी साहित्य: 23 पुस्तकें।
राजस्थानी साहित्य: 26 पुस्तकें।
कुल अनुदित और प्रकाशित पुस्तकें : 24 पुस्तकें।
अनुदित पुस्तकें : अंग्रेजी की 01 पुस्तक, पंजाबी की 01 पुस्तक, मराठी की 22 पुस्तकें।
संस्थापक/अध्यक्ष :
-राजस्थान साहित्य परिषद् (1984)
-राजस्थान बाल कल्याण परिषद् (1986),
-संस्थापक और साहित्य सम्पादक : ‘टाबर टोल़ी’ (पाक्षिक) (बच्चों का हिन्दी अखबार), नवम्बर, 2003 से निरन्तर प्रकाशन।
हिन्दी भाषा के लिए समर्पित :
-बाल अखबार ‘टाबर टोल़ी’ में गत 17 वर्षों से हिन्दी के शुद्ध शब्द का स्तंभ ‘आओ सीखें : शुद्ध लेखन’ के स्तंभकार दीनदयाल शर्मा।
यू ट्यूब पर बाल साहित्य को लेकर विशेष चर्चा :
-जयपुर दूरदर्शन, डीडी राजस्थान पर बाल साहित्य विषय पर श्री दीनदयाल शर्मा का लाइव साक्षात्कार।
=एलयूआईवाईपी (Luiyp) संस्था द्वारा बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा का साक्षात्कार।
=राजस्थान पत्रिका, जयपुर की संस्था ‘पत्रिका टीवी’ की ओर से ‘कलांजलि मुलाकात’ कार्यक्रम के अंतर्गत बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा पर साक्षात्कार।
-किसान आंदोलन पर वरिष्ठ साहित्यकार दीनदयाल शर्मा के साथ कलम न्यूज की सीधी बातचीत।
= दीनदयाल शर्मा बचपन से ही कैसे बने बाल साहित्यकार जाने कलम न्यूज के साथ।
= ‘बिरकाली काव्य कुंज’ में ‘वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा’ की ‘हिन्दी बाल कविताएँ’
= ‘बिरकाली काव्य कुंज’ में ‘वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा’ की ‘राजस्थानी बाल कविताएँ’
= ‘कविता कोश’ में ‘दीनदयाल शर्मा’ का शिशु काव्य और बाल काव्य क्षेत्र में जाना पहचाना नाम।
= सुप्रसिद्ध वरिष्ठ बालसाहित्यकार (दीनदयाल शर्मा जी ) शृंखला के अंतर्गत प्रस्तुति (भाग 1)
= सुप्रसिद्ध वरिष्ठ बालसाहित्यकार (दीनदयाल शर्मा जी ) शृंखला के अंतर्गत प्रस्तुति (भाग 2)
= फेसबुक पर लाइव ‘हिंदगी, हिंदी है जिंदगी’ में ‘बाल साहित्य का बदलता स्वरूप : दीनदयाल शर्मा’-1
= फेसबुक पर लाइव ‘हिंदगी, हिंदी है जिंदगी’ में ‘बाल साहित्य का बदलता स्वरूप : दीनदयाल शर्मा’-2
= दीनदयाल शर्मा का हिन्दी बाल साहित्य संसार (हिंदी प्रेमी लाइव सेशन)
प्रकाशित हिन्दी साहित्य
1. चिंटू-पिंटू की सूझ (बाल कहानियां, 1987, 1989, 1994, 1999 )
2. मैं उल्लू हूं (हास्य व्यंग्य, 1987, 1993)
3. बड़ों के बचपन की कहानियां (प्रेरणाप्रद घटनाओं पर आधारित कहानियां,1987)
4. फैसला (बाल नाटक, 1988)
5. सारी खुदाई एक तरफ (हास्य व्यंग्य संग्रह, 1994)
6. पापा झूठ नहीं बोलते (बाल कहानियां, 1997)
7. कर दो बस्ता हल्का (शिशु गीत, 1998)
8. फैसला बदल गया (नाटक, 1999)
9. सूरज एक सितारा है (शिशु गीत, फरवरी, 2000, सितम्बर, 2012)
10. चमत्कारी चूर्ण (बाल कहानियां, 2003)
11. सपने (बाल एकांकी, 2007 )
12. इक्यावन बाल पहेलियाँ (बाल पहेलियां, 2009, 2018)
13. राजस्थानी बाल साहित्य: एक दृष्टि (शोध आलेख, 2009)
14. चूं-चूं (शिशु कविताएँ, 2010)
15. नानी तू है कैसी नानी (बाल गीत, 2010)
16. गिली-गिली गप्पा (बाल गीत, 2014)
17. अगड़म-बगड़म (शिशु गीत, 2014)
18. चिडिय़ा चहके गीत सुनाए (बाल गीत, 2016)
19. रसगुल्ला (शिशु गीत, 2016)
20. मित्र की मदद (बाल कहानियां, 2016)
21. जंग जारी है (रेडियो नाटक, 2017)
22. हम बगिया के फूल (बाल गीत, 2018)
23. अपनी दुनिया सबसे न्यारी (शिशु गीत, 2018)
प्रकाशित राजस्थानी साहित्य
1. चन्दर री चतराई (बाल कहानियां, 1992)
2. सुणौ के स्याणौ (हास्य काव्य, 1993, 1999)
3. टाबर टोल़ी (बाल कहानियां, 1994)
4. शंखेसर रा सींग (बाल नाटक, 1997)
5. तूं कांईं बणसी (बाल एकांकी, 1999)
6. म्हारा गुरुजी (बाल एकांकी, 1999)
7. डुक पच्चीसी (हास्य काव्य, 1999)
8. गिदगिदी (हास्य काव्य, 2000)
9. स्यांती (कथा, 2003)
10. बात रा दाम (तीन बाल नाटक, 2003)
11. घर बिगाड़ै गुस्सौ (सामाजिक कथा, 2003)
12. घणी स्याणप (हास्य कथा, 2003)
13. बाळपणै री बातां (निबंध संग्रह, 2009, 2020)
14. रीत अर प्रीत (कविता संग्रह, 2012)
15. ताक धिनाधिन (बाल गीत, 2014)
16. दिवळो कोई जगावां (बाल गीत, 2016)
17. डाँखळा वन्स अगेन (पद्य काव्य, मार्च, 2019)
18. डाँखळा रतन (पद्य काव्य, जुलाई, 2019)
19. टाबरां री आड्यां (बाल पहेलियां, 2020)
20. नान्है टाबरां रा गीत (बाल गीत, 2020)
21. चन्दर री चतराई (बाल कहानियां, 2020)
22. हँसी-मजाक री का’णी (बाल कहानियां, 2020)
23. डरावणी का’णी (बाल कहानियां, 2020)
24. रोजिना अेक का’णी (बाल कहानियां, 2020)
25. मोर री जिद (बाल कहानियां, 2020)
26. हरखू री चतराई (बाल कहानियां, 2020)
साहित्यकार दीनदयाल शर्मा के रचनाकर्म पर प्रोजेक्ट निर्माण, एम.फिल एवं पीएच.डी :
= वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा के साहित्य पर शोध कार्य, एम. फिल और प्रोजेक्ट का निर्माण। डॉ.भीमराव अंबेडकर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, श्रीगंगानगर की एम.फिल. (हिन्दी साहित्य) की छात्रा प्रदीप कौर ने हिन्दी साहित्य की व्याख्याता डॉ.नवज्योत भनोत के निर्देशन में महाराज गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर को सत्र 2009 -10 में लघु शोध प्रबंध ‘‘दीनदयाल शर्मा का बाल साहित्य : एक अध्ययन’’ एम.फिल. (हिन्दी साहित्य) के चतुर्थ प्रश्न पत्र हेतु प्रस्तुत किया। (2009 -10)
= वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा के साहित्य पर प्रोजेक्ट निर्माण : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की ओर से आयोजित क्षेत्र के प्रसिद्ध साहित्यकार के प्रोजेक्ट निर्माण योजना के अंतर्गत ‘‘बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’’ विषय पर राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, मक्कासर, हनुमानगढ़, राजस्थान की वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती उर्वशी बिश्नोई के निर्देशन में सीनियर सैकण्डरी कक्षा की छात्रा कु.रेणु बाला ने सत्र 2010-11 में प्रोजेक्ट का निर्माण किया। (2010 -11)
= ‘‘बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा के हिन्दी बाल साहित्य पर महाराष्ट्र में पी.एचडी. : डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद की पीएव.डी. हिन्दी उपाधि हेतु शोध निदेशक डॉ. जाधव सुभाष दलसिंग के निर्देशन में शोध छात्र खरात विलास पांडुरंग, आंबेडकर नगर, अंबड़, जिला: जालना। प्रस्तुत ‘दीनदयाल शर्मा के हिन्दी बाल साहित्य का अनुशीलन’ (2019)
= बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा के रचनाकर्म पर पी.एचडी. : कोटा विश्वविद्यालय, कोटा से शिक्षिका एवं ख्यातनाम साहित्यकार कृष्णा कुमारी ने ‘बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा का रचना कर्म : एक समालोचनात्मक अध्ययन’ विषय पर शोध कार्य करके पी.एचडी. की उपाधि हासिल की। (जनवरी, 2020)
राजस्थानी साहित्य के लिए पुरस्कार और सम्मान
=राष्ट्रीय पुरस्कार : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से राजस्थानी बाल निबंध संग्रह ‘बाळपणै री बातां’ पर राजस्थानी बाल साहित्य के राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत (2012)
=राजस्थानी बाल साहित्य की ‘बाळपणै री बातां’ पर भीलवाड़ा की संस्था एवं बाल पत्रिका ‘बाल वाटिका’ की ओर से राष्ट्रीय बाल वाटिका पुरस्कार से पुरस्कृत (2012)
=राजस्थानी बाल एकांकी ‘म्हारा गुरुजी’ पर राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह, चित्तौडग़ढ़ से ‘चंद्रसिंह बिरकाळी राजस्थानी बाल साहित्य का प्रथम पुरस्कार’ (2000)
= राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर से राजस्थानी बाल नाटक ‘शंखेसर रा
=राजस्थानी बाल साहित्य की सेवाओं के लिए रचनाकारों की राष्ट्रीय संस्था ‘बाल चेतना’, जयपुर की ओर से ‘सीतादेवी अखिल भारतीय श्रीवास्तव सम्मान’ (2006)
=राजस्थानी बाल साहित्यिक सेवाओं के लिए प्रयास संस्थान, चूरू की ओर से आयोजित सम्मान समारोह में सार्वजनिक सम्मान (2009)
=राजस्थानी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए ‘सृजन साहित्यिक संस्थान, श्रीगंगानगर’ की ओर से ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में सार्वजनिक सम्मान (2012)
=लॉयन्स क्लब, हनुमानगढ़ की ओर से राजस्थानी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सार्वजनिक सम्मान (2013)
=राजस्थानी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए भटनेर महर्षि गौतम सेवा समिति, हनुमानगढ़ की ओर से सम्मानित (2014)
=जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ से राजस्थानी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए गणतंत्र दिवस पर सार्वजनिक सम्मान ( 2014)
=राष्ट्रीय कवि चौपाल एवं फन वल्र्ड वाटर पार्क, बीकानेर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सम्मान समारोह में राजस्थानी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सार्वजनिक सम्मान ( 03 जुलाई, 2019)
हिन्दी साहित्य के लिए पुरस्कार और सम्मान
= राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से हिन्दी बाल कथा संग्रह ‘चिंटू-पिंटू की सूझ’ पर डॉ.शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार (1988-89)
=राष्ट्रीय पुरस्कार : पंडित भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य पुरस्कार, हरदोई, उत्तरप्रदेश (1998)
=राष्ट्रीय पुरस्कार : हिन्दी बाल कथा पर अखिल भारतीय शकुन्तला सिरोठिया बाल कहानी पुरस्कार, इलाहाबाद (2000)
=राष्ट्रीय पुरस्कार : हिन्दी बाल कथा पर कमला चौहान स्मृति ट्रस्ट, देहरादून (उत्तरांचल) की ओर से उत्कृष्ट बाल साहित्यकार पुरस्कार (2001)
हिन्दी साहित्य के लिए सम्मान :
=नगर परिषद्, हनुमानगढ़ से सार्वजनिक सम्मान (1989)
=ग्राम पंचायत, जण्डावाली, हनुमानगढ़, राज. से सम्मानित (1997)
=जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ से सार्वजनिक सम्मान (1998 )
=बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर (उत्तरप्रदेश) की ओर से बाल साहित्य सम्मान, (1998)
=नागरी बाल साहित्य संस्थान, बलिया, उ.प्र. से बाल साहित्य सम्मान (1998-99)
=पं. हरप्रसाद पाठक स्मृति बाल संस्थान, कानपुर से बाल साहित्य सम्मान (1998)
=रूचिर साहित्य समिति, सोजतशहर, पाली, राज. की ओर से बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सार्वजनिक सम्मान (1998-99)
=बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं पर अखिल भारतीय साहित्य एवं कला विकास मंच, रावतसर (1999) से सार्वजनिक सम्मान।
= बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए भटनेर महर्षि गौतम सेवा समिति, हनुमानगढ़ की ओर से सम्मानित(2003)
=हिन्दी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए राजस्थान ब्राह्मण महासभा की ओर से सार्वजनिक सम्मान (2003)
=जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ से सार्वजनिक सम्मान (2004)
=लॉयन्स क्लब, हनुमानगढ़ की ओर से हिन्दी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सार्वजनिक सम्मान ( 2004)
=हिन्दी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए राजस्थान ब्राह्मण महासभा की ओर से सार्वजनिक सम्मान ( 2009)
=जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ से सार्वजनिक सम्मान (2014)
=हिन्दी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए राजस्थान ब्राह्मण महासभा की ओर से सार्वजनिक सम्मान (2014)
=हिन्दी बाल साहित्य के उन्नयन एवं सतत सृजनशीलता की प्रतिबद्धता के लिए राष्ट्रीय साहित्य पुस्तक मेला एवं साहित्य महोत्सव समिति, कटनी, मध्यप्रदेश की ओर से डॉ.राष्ट्रबंधु स्मृति बाल साहित्य सम्मान-2018 (वर्ष : दिसम्बर, 2018)
=हिन्दी बाल साहित्य की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल, मध्यप्रदेश की ओर से डॉ.राष्ट्रबंधु वरिष्ठ बाल साहित्यकार सम्मान-2018 (वर्ष : अप्रैल, 2019)
Friday, June 19, 2020
जंग जारी है (रेडियो नाटक कृति) -: समीक्षक : डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
सामाजिक अंतर्द्वंद्व के खिलाफ जारी है जंग !
जंग जारी है (रेडियो नाटक कृति) -: दीनदयाल शर्मा
समीक्षक : डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
समीक्षक : डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
नाटक साहित्य की एक अनूठी विधा है जिसमें संवाद शैली के साथ श्रव्य और दृश्य दोनों विद्यमान रहते हैं. इस विधा की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि दर्शक बड़ी जल्दी खुद को नाटक के पात्रों से जुड़ा हुआ महसूस करता है. जहां तक रेडियो नाटकों की बात है, यह रंगमंच से थोड़ा भिन्न है. इस विधा में नाटक के प्रस्तोता को केवल श्रव्य माध्यम से दृश्य रचने पड़ते हैं. नाटककार के समक्ष यह चुनौती होती है कि वह श्रवण माध्यम से ही दर्शकों के समक्ष पूरा दृश्य प्रस्तुत करे. शायद यही कारण है कि अतिरिक्त ऊर्जा और गहन चिंतन की मांग रखने वाली इस साहित्यिक विधा पर अपेक्षाकृत कम रचनाकारों ने काम किया है.
बाल साहित्य के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले वरिष्ठ रचनाकार दीनदयाल शर्मा लंबे समय से रेडियो नाटक विधा पर गंभीरता से काम कर रहे हैं. 2017 में प्रकाशित उनकी रेडियो नाटक कृति 'जंग जारी है' में शामिल सभी नाटक उनकी साहित्यिक पकड़ और समर्पित रचनाकर्म की साख भरते हैं. इस पुस्तक में सम्मिलित नाटकों में दृश्य और श्रव्य तत्वों को बेहद शानदार ढंग से गूंथा गया है. इसी खूबी के चलते इन नाटकों का आकाशवाणी से मंचन भी हो चुका है जिसे श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली है.
दीनदयाल शर्मा द्वारा लिखे गए इन रेडियो नाटकों में मानवीय संबंधों का बड़ी सूक्ष्मता से विवेचन किया गया है. संकलन का प्रत्येक नाटक मानवीय स्वभाव और वैचारिक भिन्नता को प्रगट करता हुआ आगे बढ़ता है. रिश्तों की बारीकियों को शब्दों में पिरोना कठिन कार्य है. संवाद शैली में तो यह कठिनता और बढ़ जाती है क्योंकि पाठक, दर्शक और श्रोता नाटक के संवादों में वास्तविक जिंदगी को तलाशने लगते हैं. संकलन का पहला नाटक 'घर की रोशनी' समाज में लड़कियों के प्रति विभेदकारी मानसिकता को उजागर करता है. इस नाटक में नाटककार बड़े ही रोचक ढंग से संवादों को बढ़ाते हुए ऐसी सामाजिक मानसिकता को बदलने में कामयाब हो जाता है.
इसी प्रकार समाज में बुजुर्गों की दशा को चित्रित करता नाटक 'रिश्तो का मोल' लिखा गया है जहां आधुनिकता में रंगे हुए बेटे बहू अपने जन्मदाताओं के साथ बुरा बर्ताव करते हैं. इस नाटक में रामदेई नामक सास का पात्र हमारे आसपास बखूबी देखा जा सकता है. एक रेडियो नाटककार की सफलता यही है कि श्रोताओं को उसके पात्र काल्पनिक न लगें.
'पगली' इस संकलन का सुप्रसिद्ध नाटक है जिसके रेडियो मंचन को बेहद सराहा गया है. इस नाटक में स्त्री की दुर्दशा का बखूबी चित्रण किया गया है. सौतेली मां के दुर्व्यवहार से एक अच्छी भली लड़की अंततः पागलपन का शिकार हो जाती है. अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ एक छोटी बच्ची का विवाह कितना भयावह परिणाम देता है, यह इस नाटक से उजागर होता है. पाठक हो या श्रोता, इस नाटक के साथ बहते चले जाते हैं. दीनदयाल शर्मा की खूबी है कि वह आसपास के सामाजिक परिदृश्य को अपने संवादों में पूरी गंभीरता से उभारते हैं. 'अंधेरे की तस्वीर' नाटक में उनके द्वारा एचआईवी एड्स के खतरे को प्रस्तुत किया गया है. अत्यंत संवेदनशील विषय पर लिखा गया यह यह नाटक पाठकों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ता है.
समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि बोधि प्रकाशन से प्रकाशित रेडियो नाटक कृति 'जंग जारी है' समकालीन साहित्यिक रचनाओं में विशिष्ट शैली के कारण अलग मुकाम रखती है. कविता और कहानी के दौर में दीनदयाल शर्मा अपने रेडियो नाटकों से श्रोताओं को बांधने में सफल हुए हैं. यह सफलता उनके रचनाकर्म के दायित्व को और बढ़ा देती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि पाठकों को और बेहतर कसावट के साथ नए रेडियो नाटक पढ़ने और सुनने को मिलेंगे.
समीक्षक : डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
www.cottoncitylive.com
समीक्षक : डॉ.हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'
www.cottoncitylive.com
पुस्तक : जंग जारी है
विधा : नाटक (नौ रडियो नाटक)
लेखक : दीनदयाल शर्मा
पृष्ठ : 188
प्रकाशन वर्ष : 2017
मूल्य : 200/-
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
विधा : नाटक (नौ रडियो नाटक)
लेखक : दीनदयाल शर्मा
पृष्ठ : 188
प्रकाशन वर्ष : 2017
मूल्य : 200/-
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
Friday, March 6, 2020
श्री दीनदयाल शर्मा के रेडियो नाटक का प्रत्येक संवाद प्रामाणिक सत्य की तरह लगता है
श्री दीनदयाल शर्मा के रेडियो नाटक का प्रत्येक संवाद प्रामाणिक सत्य की तरह लगता है : वरिष्ठ उदघोषक एवं शायर श्री राजेश चडढा द्वारा पुस्तक में लिखी भूमिका
हिन्दी नाटकों का मूल संस्कृत से ही है। संस्कृत में ही विश्व की सबसे प्राचीन नाट्य परम्परा मिलती है। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र इस विषय का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। नाटक एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है, परन्तु रेडियो ने श्रव्य माध्यम में ही सीमित रहते हुए नाटकों की एक नई शैली का विकास किया। नाटक के कथ्य को शब्दों, ध्वनियों और संवाद-प्रस्तुति के माध्यम से सम्प्रेषित करने के मामले में मंच नाटकों की तुलना में रेडियो नाटक कहीं अधिक सशक्त सिद्ध हुआ है। स्वतन्त्रता के बाद जितनी अधिक संख्या में रेडियो के लिए विभिन्न भाषाओं में मौलिक नाटक लिखे गए, उतने मंच के लिए नहीं लिखे गए।
रेडियो नाटकों का विकास राष्ट्रीय स्तर पर भी हुआ और क्षेत्रीय स्तर पर भी। रेडियो नाटक में मंच पर कोई घटना नहीं घटती, जिसे देखा जा सके बल्कि संवादों को कुछ इस तरह से लिखा और बोला जाता है कि श्रोताओं को सुनते समय ऐसा लगे कि उनके समक्ष कोई रंगमंच पर नाटक खेला जा रहा है। रेडियो नाटक में संवाद लिखते समय आपको इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि कहानी का एक-एक पहलू और पात्रों का चरित्र शब्दों के माध्यम से पूरी तरह समझ में आए। रेडियो नाटक के इसी क्राफ्ट में निपुण हैं श्री दीनदयाल शर्मा। वे ऐसे लेखक हैं जो रेडियो के लिए लिखने और विशेष रूप से नाटक लिखने में गर्व का अनुभव करते हैं।
श्रव्य माध्यम की बेहतरीन समझ रखने वाले श्री दीनदयाल शर्मा की भाषाई खूबी संवाद में प्रवाह रखती है। रेडियो नाटकों के रास्ते में जो और दो बड़ी चुनौतियाँ उपस्थित रहती हैं- उनमें एक है अदृश्य पात्रों को श्रोताओं के सामने सजीव करना और दूसरी ध्वनि प्रभाव । श्री दीनदयाल शर्मा का प्रत्येक नाटक आपको जहाँ चाहे ले जा सकता है- दुनिया के किसी भी कोने में, घर के भीतर, रसोई में या आंगन में, बाजार में, मेले में या एकान्त में, पहाड़ी, झरने के पास या समन्दर के किनारे। श्री शर्मा के नाटक का प्रत्येक संवाद प्रामाणिक सत्य की तरह लगता है। मसलन पात्र उस समय कहां हैं- घर के अन्दर या किसी भीड़ भरे स्थान पर, एक-दूसरे के नजदीक बैठे हैं या कुछ दूरी पर, सिचुएशन रोमांटिक है या तनावपूर्ण। छोटे एवं नाटकीय संभावना से परिपूर्ण संवाद श्री दीनदयाल शर्मा के नाटकों की विशेषता प्रतीत होती है।
आज के भागमभाग के दौर में शब्द पढऩे, कानों से सुनने के कम, आंखों से पढऩे के अधिक हो गए हैं। आज शब्द केवल देखकर महसूस किए जाते हैं। जैसे भाषा बोलने सुनने की न होकर देखने की हो गई हो ! असल में समाज में शोर ही इतना अधिक हो गया है कि हमें अपनी आवाज़ को सुनने के लिए भी अपने कान से कान लगाना पड़ रहा है। कभी अपना लोहा मनवाने वाली साहित्यिक विधा 'रेडियो नाटकÓ आज अपने को ही रेडियो पर सुनने के लिए तरस रही है। ऐसे संकट के दौर में भी श्री दीनदयाल शर्मा अपने नाटकों के माध्यम से समाज को कुछ नया देने की कोशिश में दिखते हैं। इस शोर-शराबे के बीच श्री दीनदयाल शर्मा अपनी बात कहने का साहस दिखाने के साथ-साथ अपनी भाषा और संवेदना दोनों ही स्तरों पर पाठकों तथा श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने में सक्षम दिखते हैं।
'जंग जारी हैÓ नामक इस संग्रह में नौ रेडियो नाटक हैं। ये समय-समय पर रेडियो से प्रसारित होते रहे हैं। इन नाटकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये नाटक नारी के प्रत्येक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मैं चाहूँगा कि जब आप 'जंग जारी हैÓ पढ़ें तो यह याद रखें कि इस कृति के सभी नाटक श्री दीनदयाल शर्मा ने रंगमंच के लिए नहीं लिखे। ये सभी नाटक ध्वनि नाटक हैं और 'ध्वनिÓ के कैमरे से किसी भी रूप में कम सक्षम नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि जिन नाटकों को रेडियो हेतु मंैने निर्देशित और प्रस्तुत किया है, वे नाटक अब पुस्तक के रूप में आपके हाथ में हंै।
-राजेश चड्ढ़ा
मोबाइल: 94143 81939
मोबाइल: 94143 81939
रेडियो नाटक 'जंग जारी है' श्री दीनदयाल शर्मा
ख्यातनाम साहित्यकार श्रद्धेय डाॅ.अर्जुन देव चारण द्वारा पुस्तक में लिखी भूमिका : रेडियो नाटक के माध्यम से समाज को चेतन करने का सफल प्रयास
'जंग जारी है' श्री दीनदयाल शर्मा के नौ रेडियो नाटकों का संकलन है। बाल साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में पूरे देश में उनकी विशिष्ट पहचान है। उन्होंने हिन्दी एवं राजस्थानी दोनों भाषाओं में बच्चों के कई नाटक लिखे हैं जो स्कूलों में खेले भी जाते हैं। इस नाते यह कहा जा सकता है कि उन्हें रंगमंच का ज्ञान भी है। नाटक और नाट्य के अन्तर को समझते हुए नाटक लिखने पर ही वह नाटक मंचन के योग्य हो सकता है। किसी भी नाटक की सही पहचान उसके मंचन से ही संभव हो पाती है। रेडियो नाटक मंचीय नाटक से थोड़ी भिन्न विधा है। इसमें परोक्ष को प्रत्यक्ष की तरह प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी नाटककार को निभानी पड़ती है। जहाँ नाट्य प्रस्तुति में नाटककार को अतिरिक्त कुछ भी नहीं करना पड़ता है क्योंकि जो कुछ घटित हो रहा है वह प्रेक्षक के सामने प्रत्यक्ष है किन्तु रेडियो नाटक तो सुना जा रहा है इस तरह से देखें तो वह नाटक के मूल सूत्र को ही पुन: उलट कर प्रस्तुत करता है।
नाटक को श्रव्य दृश्य काव्य माना गया है अर्थात् एक ऐसी विधा जो सुनने के साथ देखी भी जाती हो। साहित्य की अन्य विधाएँ सिर्फ पढऩे या सुनने तक ही सीमित होती हैं किन्तु नाटक इसीलिए विशिष्ट होता है कि वह सुनने के साथ ही देखा भी जाता है किन्तु रेडियो नाटक में नाटककार की चुनौती यही होती है कि वह देखने को भी सुनने के माध्यम से ही प्रस्तुत करे। अर्थात् उसके संवादों में दृश्य आ जाए या दृश्य रचा जाए जिससे उसे सुनने वाले को देखने का आनन्द भी मिलता रहे। रेडियो नाटक में इसीलिए ध्वनि प्रभाव का महत्त्व अधिक होता है।
जिस तरह से नाटक को नाट्य बनाने में निर्देशक एवं अभिनेता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है उसी तरह रेडियो नाटक को नाट्य में प्रस्तुत करने में संवाद बोलने वाले एवं उसे प्रस्तुत करने वाले प्रस्तोता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। संवाद अदायगी में सिर्फ टोन से ही सब कुछ सम्प्रेषित करना होता है। नाटक में अभिनय के चार प्रकार माने गये हैं वाचिक, आंगिक, सात्विक एवं आहार्य। इन चारों के योग से ही नाट्य प्रस्तुति संभव हो पाती है। किन्तु रेडियो नाटक में अभिनय का सिर्फ एक ही प्रकार काम में आता है और वह है वाचिक अभिनय इसलिए वहाँ संवाद बोलने वाले व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अभिनय के अन्य तीन प्रकारों को केवल अपने वाचन से श्रोता तक पहुंचाए। इसी तरह से रेडियो नाटक लिखने वाले रचनाकार के सामने भी यह चुनौती होती है कि वह संवादों में गति, क्रिया, रस को गूंथ दे।
श्री दीनदयाल शर्मा ने अपने इन नाटकों में समाज में व्याप्त तत्कालीन कुरीतियों, विसंगतियों पर चोट की है। इस तरह से ये नाटक अपने सुनने वाले को एक आदर्श समाज का प्रतिबिम्ब दिखाने की कोशिश करते हैं। 'जंग जारी है ' से तात्पर्य यही है कि समाज में इन बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई अभी भी जारी है क्योंकि जब तक समाज की छोटी से छोटी इकाई अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति इस बात को नहीं समझेगा तब तक ये बुराइयाँ समाप्त नहीं होगी। अच्छी बात यह है कि रेडियो की पहुंच हजारों लाखों तक नहीं बल्कि करोड़ों तक होती है इसलिए ये रेडियो नाटक अपने मकसद में कामयाब होंगे और समाज में व्याप्त कन्या भ्रूण हत्या, एड्स जैसी गंभीर बीमारियां, स्त्रियों के प्रति किये जाने वाले अत्याचार एवं नशे के दुष्प्रभाव के विरुद्ध एक सशक्त आवाज बनकर उभरेंगे। इन सामाजिक बुराइयों के बारे में समाज को चेतन करने के प्रयास इन रेडियो नाटकों से निस्सन्देह सफल होंगे। इन रेडियो नाटकों के लेखन के लिए श्री दीनदयाल शर्मा को साधुवाद देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में और अच्छी रचनाएं वे अपने समाज तक पहुंचाएंगे।
- डॉ. अर्जुन देव चारण
Friday, August 2, 2019
Monday, June 17, 2019
Sunday, March 31, 2019
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