प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
मेरे रेडियो नाटक
मेरे रेडियो नाटक
नाटक- '....और थाली बज उठी '
नाटक- ' पगली '
नाटक- ' मेरा कुसूर क्या है '
नाटक- ' रिश्तों का मोल '
झलकी- ' गोलमाल '
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