प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, October 31, 2010

दीपों का त्यौहार / दीनदयाल शर्मा

दीपों का त्यौहार
दीपों का त्यौहार दिवाली
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएँ।


छत्त पर लटक रहे हों जाले
इनको दूर हटाएँ,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ।



अनार, पटाखे, बम-फुलझडी,
चकरी खूब चलाएँ,
हलवा-पूड़ी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खाएँ।



सुन्दर-सुन्दर पहन के कपड़े
घर-घर मिलने जाएँ,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटे,
अपने सब बन जाएँ।

-दीनदयाल शर्मा


Friday, October 29, 2010

गजब की दिवाली / दीनदयाल शर्मा

गजब की दिवाली  

धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था ।

  सर्र-सर्र से
  चक्करी चलती
  फर्र-फर्र
  फुलझड़ी फर्राटा ।

सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।

  फटाक-फटाक
  चली जो गोली
  ऐसा भी 
  पिस्तौल बना था ।

ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।

  हुर्रे-हुर्रे, का
  शोर मचाकर
  बच्चों का टोला
  झूम रहा था ।

जगमग हो गई 
दुनिया सारी
ख़ुशियों का पहिया
घूम रहा था ।


-दीनदयाल शर्मा



Sunday, October 24, 2010

बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा से साक्षात्कार

बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा से 

साक्षात्कार :  कु. प्रदीप सरां 'दर्शन'

सबसे पहले तो आप बाल साहित्य के बारे में बताएं कि यह कैसा होना चाहिए?
- बाल साहित्य बच्चों के मन के अनुकूल होना चाहिए। केवल सरल रचना ही बाल साहित्य नहीं है। 'एक स्तरीय बाल साहित्य से तात्पर्य है कि वह रोचक और मनोरंजक होने के साथ-साथ बच्चों के मन को भाए।' जरूरी नहीं है कि प्रत्येक रचना शिक्षाप्रद हो...संदेश ही दे...हां, यदि कोई रचना बच्चों को संदेश देती है तो वह रचना श्रेष्ठ यानी सोने पर सुहागा को चरितार्थ करेगी।

बच्चों के लिए आपने कविताएं, कहानियां, नाटक, एकांकी आदि अनेक विधाओं पर कलम चलाई है...लेकिन बच्चों की प्रत्येक रचना में आप चित्र अवश्य देते हैं। क्या रचनाओं के साथ चित्र देना इतना जरूरी है?
-बाल रचनाओं में चित्रों का होना बहुत जरूरी है। चित्र देखकर बच्चा उस रचना को पढऩे का, उससे जुडऩे का प्रयास करता है। चूंकि बाल साहित्य की किसी भी विधा में पहले कहने-सुनने की परम्परा थी...इसके बाद चित्र शैली आई। अपनी बात को चित्रों के माध्यम से कहा जाने लगा। शब्द बाद में आए....और पहले चित्रांकन आया। चित्रांकन के बाद अक्षर आए...लिपि आई। चंूकि अक्षर साहित्य सृजन की पहली सीढ़ी है। बच्चों को पहले चित्र, फिर अक्षर...और इसके बाद शब्द और इसी प्रक्रिया में फिर वाक्यों से जोड़ा गया।

क्या आप केवल बच्चों के लिए ही लिखते हैं?
-जी नहीं, मैं साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखता हंू...लेकिन मेरी मूल विधा बाल साहित्य ही है। बच्चों के लिए मैंने सभी विधाओं पर कलम चलाई है यथा कहानी, एकांकी, नाटक, कविता, संस्मरण आदि।

इनके लिए क्या कोई विशेष लेखन होता है? वैसे बच्चे तो सब तरह की रचनाएं पढ़ लेते हैं...
-जी बिल्कुल नहीं। बच्चे सब तरह की रचनाएं नहीं पढ़ते। और आज इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाने में तो बच्चों को साहित्य से जोडऩा बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में बाल साहित्यकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। यदि कोई बच्चा कोई किताब या कोई रचना पढ़ता है तो वह केवल अपने मन की रचनाएं पढ़ता है। बच्चा यह नहीं देखता कि अमुक रचना का रचनाकार कौन है...बच्चा रचनाकार का नाम कभी नहीं देखता। बड़े लेखक की यदि कोई हल्की रचना है तो वह उसे तुरन्त नकार देगा। बस..उसे तो कोई रचना पसंद आनी चाहिए। फिर वह उस रचना को बार-बार पढ़ता है। गुनगुनाता है...गाता है...मस्ती लेता है और एक दूसरे को बताता है। बच्चों की दुनिया सपनों की दुनिया होती है। बच्चों को सपनों के माध्यम से यथार्थ की तकलीफें यदि हल होती दिखाई या बताई जाएंगी तो बच्चे अपने सपनों को सकारात्मक रूप से साकार करेंगे।
रही बात विशेष लेखन की...तो बच्चों के लिए लिखने के लिए बच्चा बनना पड़ता है और मैं तो अपने आपको बच्चा ही मानता हंू...और बच्चा बनकर ही जीना चाहता हंू। बच्चे निश्छल होते हैं...वे एक-दूसरे में कोई भेदभाव नहीं करते और लड़ते - झगड़ते हैं तो पल भर बाद ही वैसे के वैसे हो जाते हैं। लोग कहते हैं कि हम बच्चों को सिखाएं। उन्हें संस्कारित करें। लेकिन मेरा मानना है कि हम बच्चों से सीखें। हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे झूठ बोलें। लेकिन हम खुद बहुत बार झूठ बोल जाते हैं। इस बात को बच्चा महसूस कर लेता है और धीरे-धीरे वह भी उसी रंग में रंग जाता है। आपने महसूस किया होगा कि बच्चे आंख में एक विशेष प्रकार की चमक होती है। जो उसके भीतर की जिज्ञासा को दर्शाती है। कुछ जानने की...कुछ अच्छा सीखने की। जबकि बड़ों में अनेक लोगों की आंखों में धूर्तता स्पष्ट दिखाई देती है। उसके भीतर दूसरे की कमियां जानने की भूख और मौके विशेष पर किसी को नीचा दिखाने की ललक को बहुत बार महसूस किया जा सकता है।
हम बच्चों को ईमानदार होने की नसीहत देते हैं जबकि हम खुद पग-पग पर अपनी ईमानदारी  पर प्रश्न चिन्ह लगाते चले जाते हैं। हम येन-केन-प्रकारेण अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं। जबकि आपने देखा होगा कि नन्हे मासूम बच्चों के कपड़ों में तो जेबें होती ही नहीं हैं। वे तो दो रूपये के गुब्बारे से भी इतने खुश हो जाते हैं मानो सारी दुनिया की खुशी उनकी झोली में आ गई हों और हम............हम बड़ी-बड़ी आवश्यकताओं को पूरी करने में  कुछ भी करने से नहीं हिचकते। हम यह नहीं देखते कि जाते समय साथ क्या लेकर जाएंगे। चंूकि कफन के भी तो जेबें नहीं होतीं। अब सोचने की बात तो ये है कि बच्चा जन्मता है तब भी कुछ नहीं लेकर नहीं आता और जीवन के अंत में जब आदमी दुनिया से विदा होता है...तब भी वह कुछ नहीं लेकर जाता....फिर भी हम अपनी कारगुजारियों से एक दूसरे को परेशान करने से नहीं चूकते। यदि सारी दुनिया बच्चों जैसी हो जाए...तो दुनिया का रूप ही बदल जाएगा। फिर सारी दुनिया रसमय और रंगीन हो जाएगी...जीने का अंदाज ही बदल जाएगा।

आप अपनी रचनाओं में अधिकांशत: किस बात पर बल देते हैं?
-सुसंस्कार पर....मैं अपनी रचनाओं में मानवता, प्रेम, दया, करुणा, सहयोग, सेवा आदि मानवीय मूल्यों पर बल देते हुए सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करने का प्रयास करता हंू। मैंने अपनी राजस्थानी बाल एकांकी कृति 'तूं कांईं बणसी?' में इन्सानियत और अध्ययन की महता पर बल दिया है वहीं अपने सपनों को साकार करने के लिए अंग्रेजी बाल नाट्य कृति 'द ड्रीम्स' में अनुशासन और अध्ययन की महता पर बल दिया है।

आपकी बाल नाट्य कृति 'द ड्रीम्स' का लोकार्पण तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहब ने किया था। आपकी इस रचना के प्रति उनकी क्या प्रतिक्रिया रही?
-बहुत ही बढिय़ा प्रतिक्रिया दी थी उन्होंने। चूंकि लोकार्पण से पहले उन्होंने इस कृति को पढ़ा था और 17 नवम्बर 2005 को लोकार्पण के समय उन्होंने इसकी थीम को 'एक्सीलैण्ट' कह कर मेरा उत्साहवद्र्धन किया था। इस कृति में दी गई रचना के पात्रों के नाम में भी लॉजिक है। सभी पात्रों के नाम रचना के अनुकूल और सकारात्मक दिए हैं। जैसे शिक्षक का नाम है- पी.प्रकाश....प्रकाश यानी ज्ञान का सूचक। और बच्चे सभी धर्मों के लिए हैं। जैसे- मस्तानसिंह, हनीफ, विनोद, डेविड, विकास, जागृति, सपना और आशा। इसमें मैंने शिक्षक के माध्यम से बताया है कि ए से लेकर जैड तक छब्बीस अक्षर होते हैं। जिसमें ए का 1 अंक, बी के 2, सी के 3, डी के 4, ई के 5....और इसी तरह जैड के 26....। अब डिसिप्लीन की स्पैलिंग लिखने के बाद प्रत्येक अक्षर को अंक देकर उन सबको यदि जोड़ें तो योगफल पूरे 100 अंक आता है। यानी किसी भी सफलता को पाने के लिए यदि हम अनुशासित हैं और उसी के मुताबिक मेहनत करते हैं तो हमें सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। 

बच्चों के लिए और क्या कुछ कहना चाहेंगे आप?
-बच्चों से तो मेरा यही कहना है कि वे अध्ययनशील बनें ....अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ें और अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। लेकिन मैं बड़ों से निवेदन करना चाहूंगा कि वे बच्चों से बात करें। उनके पास बैठें। कुछ सुनें...कुछ सुनाएं...उनके मित्र बनें ...बाप नहीं। बच्चों से मित्रता के बाद हम स्वयं को तनावरहित महसूस करेंगे........ और फिर अपने अंतिम दिनों में हमें किसी वृद्धाश्रम को तलाशने की जरूरत नहीं होगी।

" दीनदयाल शर्मा का बाल साहित्य : एक अध्ययन " लघु शोध प्रबंध 
सत्र - 2009 -2010  

Friday, October 22, 2010

छह शिशु कविताएँ / दीनदयाल शर्मा

1.

मक्खियाँ भिनभिनाती हैं,
मच्छर गुनगुनाते हैं
चुपचाप उड़ती है तितली
भँवरे गीत सुनाते हैं|
2.

कुत्ते भौंकते भों-भों-भों,
गाय और बैल रंभाते हैं.
गधे रेंकते ढेंचूँ-ढेंचूँ 
घोड़े हिनहिनाते हैं।

3. इन्द्रधनुष 

बरखा जैसे ही हो गई बंद 
फ़ैली धरा पे हवा सुगंध 
सूरज की विपरीत दिशा में 
खड़ा था सतरंगी पाबन्द।

4. बादल

आसमान में छाए बदल
पानी भर-भर लाए बादल
रिमझिम-रिमझिम बरखा करते
सबके मन को भाए बादल.

5. मोर

आसमान में बादल आते
मोर नाचते सबको भाते
सबका लेते हैं चितचोर
कितने सुन्दर लगते मोर।

6.

म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली करती 
चूहा चूँ चूँ करता है
कुकडू कूँ की बांग लगाता,
मुर्गा जल्दी उठता है।

Monday, October 18, 2010

Baal Sansmaran book "Baalpane ri baatan" par tippni by Neetu Soni, Parlika

 परलीका
                                                                                                                                                                 18 अक्टूबर, 2010

आदरजोग ताऊजी श्री दीनदयाल जी शर्मा,
प्रणाम। आपरी पोथी 'बाळपणै री बातां' बांची। आ पोथी भोत ई रोचक अर मनभावणी है। बाळपणै रा सगळा संस्मरण मनै भोत दाय आया। गांधी जी रै पग लागग्यो, बाळ कोनी कटवाऊं, मैं भी बाळ कटवा सूं, ध्यान तो बंटै, लड़ाई छुडवाऊं, रोजीना एक कहाणी, बचपन में लाग्योड़ी है समेत सगळा सस्मरणां में मन नै ऊजळो करण वाळी सीखां भरी पड़ी है। आ किताब बांचगे म्हारै जिस्या टाबरां नै सीख मिलै कै आपां के हां अर आपां नै के करणो चइयै अर के नां करणो चइयै। साची बात तो आ है कै आ पैली किताब है जकी मैं पूरी एक ई सागै बांच दी अर पूरी बांचण स्यूं पैली छोड कोनी सकी। इत्ती बढिया किताब है कै मेरै कनै कैवण नै सबद कोनी। भोत ई बढिया.....भोत ई बढिया किताब है। आ किताब तो हरेक टाबर नै बांचणी चइयै। भोत ठाठ आवै अर भोत सीख मिलै। ताऊजी, इसी किताबां म्हारै खातर मांडता रैवो। आ किताब मेरी सगळी सहेलियां नै भी भोत दाय आई है।

थारी लाडली

नीतू सोनी
जमात : ग्यारवीं
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परलीका (हनुमानगढ़)

Wednesday, October 13, 2010

रावण / दीनदयाल शर्मा


रावण

सालो-साल दशहरा आता


पुतला झट बन जाए।

बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।

रूप राम का धरकर कोई,
अग्निबाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!

मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
अपने भीतर नहीं झाँकते,
खुद को राम कहाए।

सबके मन में बैठा रावण,
इसको कौन मिटाए।


-दीनदयाल शर्मा







अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा

अक्कड़-बक्कड़ 

अक्कड़-बक्कड़ बोकरी
बाबाजी की टोकरी ।

टोकरी से निकला बंदर
बंदर ने मारी किलकारी
किलकारी से हो गया शोर
शोर मचाते आ गए बच्चे
बच्चे सारे मन के कच्चे

कच्चे-कच्चे खा गए आम
आम के आम गुठली के दाम
दाम बढ़े हो गई महंगाई
महंगाई में पड़े न पार
पार करें हम कैसे नदिया
नदिया में नैया बेकार

बेकार भी हो गई पेटी
पेटी में ना पड़ते वोट
वोट मशीनों में है बटन
बटन दबाओ पड़ गए वोट
वोट से बन गए सारे नेता
नेता भी लगते अभिनेता

अभिनेता है मंच पे सारे
सारे मिलकर दिखाते खेल
खेल देखते हैं हम लोग
लोग करें सब अपनी-अपनी
अपनी डफली अपना राग

राग अलापें अजब-गजब हम
हम रहते नहीं रलमिल सारे
सारे मिलकर हो जाएँ एक
एक-एक मिल बनेंगे ताकत
ताकत सफलता लाएगी
लाएगी खुशियाँ हर घर-घर
घर-घर दीप जलाएगी ।

- दीनदयाल शर्मा



Monday, October 11, 2010

Lokarpan

बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा की 
तीन बाल साहित्यिक पुस्तकों का लोकार्पण


हनुमानगढ़, 11 अक्टूबर। बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा की तीन बाल साहित्यिक पुस्तकें- 'नानी तंू है कैसी नानी', 'इक्यावन बाल पहेलियां' और 'राजस्थानी बाल साहित्य: एक दृष्टि..' का लोकार्पण राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडंूगरगढ़ और राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में श्रीडंूगरगढ़ में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय लेखक सम्मेलन में महाराजा गंगासिंह विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ.गंगाराम जाखड़, दूरदर्शन केन्द्र, जयपुर के निदेशक हरीशचंद करमचंदानी, कोटा के आलोचक डॉ.हितेश व्यास और राष्ट्रभाषा समिति अध्यक्ष श्याम महर्षि ने किया। समारोह में पुस्तक विमोचन सत्र का संचालन 
साहित्यकार रवि पुरोहित ने किया।






Saturday, October 2, 2010

गाँधी शास्त्री जयंती पर


गाँधी शास्त्री / दीनदयाल शर्मा 

गाँधी-शास्त्री  सबके प्यारे
हम सबके हैं राज दुलारे.
हम सब सीखें इनसे जीना,
ये हैं सबकी आँख के तारे,

संकट में ना ये घबराए
सत्य अहिंसा हमें सिखाए
चलें सभी हम इनके पद पर,
जीवन के हो वारे न्यारे....


2 अक्टूबर ...गाँधी जयंती पर


गाँधी बाबा / दीनदयाल शर्मा 

गाँधी बाबा आ जाओ तुम
सुन लो मेरी पुकार,
भूल गये हैं यहाँ लोग सब,
प्रेम, मोहब्बत प्यार.

शांति, अमन और सत्य-अहिंसा
पाठ कौन सिखलाए ,
समय नहीं है पास किसी के,
कौन किसे बतियाए.
तुम आ जाओ गाँधी बाबा,
हो सबका उद्धार ....

मारकाट में शर्म न शंका,
कैसे हो गए लोग,
कैसा संक्रामक है देखो
घर - घर  फैला रोग,
दवा तुम्हीं दो गाँधी बाबा,
सबका मेटो खार.....

बन्दर तीनो मौन तुम्हारे,
इन पर भी दो ध्यान, 
कहीं हो जाए कुछ भी तीनो,
कभी न देते कान,
कहाँ मौन साधक बन बैठे,
मारो इक हुँकार..... 

नन्ही कवितायेँ - 3 / दीनदयाल शर्मा



चिकोटियां  / दीनदयाल शर्मा 

बेटा चंगा
घर में गंगा.

बेटा निकम्मा
जवानी में दमा.

अमीर - गरीब का अंतर
कोई न चले मंतर.

बेरोजगार युवा
जहाज का कौवा.

पानी के लिए रोये
जान से हाथ धोये.

नहीं दिलाये जेवर
चढ़ा लिए तेवर.

बढ़ गई राड़
दिन पहाड़.

गीदड़ बना शेर
दिनों का फेर.

पूरे हुए अरमान
दिमाग आसमान.

कभी मत राड़ कर
वो देगा छप्पर फाड़कर.

अब चन्दन घिस
टांय  टांय फ़ीस.

अंगूठी नग जड़ा
पैरों पर खड़ा.

बंदूकें तन गई
जान पर बन गई.

कितना ही समझादो
मिट्टी का माधो.

मेरा वही है शौहर
लगा दी मोहर.

मिट गया स्यापा
रस्ता नापा.

रोज हाये  हाये
रो के दिन बिताये.

तुरत फुरत का ज़माना 
हथेली पे सरसों उगाना.

कैसे असर करे दवा
लग गई हवा.

काम में आड़ू
फेर दी झाड़ू.

दिनभर दौड़
जोड़ - तोड़.

खुद से लड़
मत खोद जड़.

चोरी पकड़ में आई
उड़ने लगी हवाई.

रिजाई नहीं है छोरे
क्यूं डाले वो डोरे.

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