प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, October 30, 2014

गिली-गिली गप्पा / दीनदयाल शर्मा


गिली-गिली गप्पा / दीनदयाल शर्मा 

गिली-गिली गप्पा
ओके डियर
चलें जी टाटा !

हो गई बातें
बीती रातें
करी शिकायत
इधर-उधर की
छानें चप्पा !

सारा दिन 
क्या करें पढ़ाई
ऐसी भी क्या शामत आई
याद करें कोई 
दूजा टप्पा !

सुबह-शाम बस 
एक सा कटता
देखें चँदा
बढ़ता-घटता
क्या खाएं
और क्या न खाएं
आज चलेगा
गोल गप्पा !

करेंगे मैसेज 
मोबाइल पर
कभी शायरी
इस पर 
उस पर
सोएंगे फिर 
ओढ़ के चादर
लेंगे नींद का 
बड़ा सा झप्पा !!

दीनदयाल शर्मा , बाल साहित्यकार 
10 / 22 आर. एच. बी. कॉलोनी, हनुमानगढ़ ज. 
पिन कोड. - 335512 , मोब. 09414514666 

Tuesday, October 28, 2014

अंक गणित / दीनदयाल शर्मा


अंक गणित / दीनदयाल शर्मा
अंग्रेजी,हिन्दी, सामाजिक
और विज्ञान समझ में आए
अंक गणित जब करने बैठूं 
सारा दिमाग जाम हो जए।

सरल जोड़ भाग गुणा घटाओ
कर लेता हूँ जैसे तैसे
घुमा घुमा कर पूछे कोई
उसको हल करूं मैं कैसे

इतना बड़ा हो गया हूं मैं
अंक गणित में अब भी जीरो
बाकी सारे काम करूं झट
दुनिया माने मुझको हीरो।।


- दीनदयाल शर्मा
10/22 आर.एच.बी.कॉलोनी,
हनुमानगढ़ जं. 335512, राज.
Mobile : 09414514666

दीनदयाल शर्मा की हिंदी बाल कविताएं














मेरी बाल कविताएं --


फुलवारी/ दीनदयाल शर्मा


भांत-भंतीली खुशबू प्यारी
महकी फूलों की फुलवारी


तितली फूलों पर मंडराए
भौंरे अपनी राग सुनाए
पत्ता-पत्ता हुआ हरा है
धरा हो गई हरियल सारी।


सूरज के उगते ही देखो
चिडिय़ा चहके गीत सुनाए
ओस की बूूंदों से टकराकर
कण-कण को रश्मि चमकाए


मदमाती जब चली पवन तो
महक उठी है क्यारी-क्यारी।


गेंदा और गुलाब - चमेली
सबकी खुशबू है अलबेली
जिधर भी देखो मस्ती छाई
जीव-जगत के मन को भायी


अपनी मस्ती में हैं सारे
भोली शक्लें प्यारी-प्यारी।।


मोर / दीनदयाल शर्मा


आसमान में बादल छाए
गड़-गड़-गड़-गड़ करते शोर
अपने पंखों को फैलाए
घूम-घूम कर नाचे मोर।


सजी है सुंदर कलंगी सिर पर
आँखें कजरारी चितचोर
रिमझिम-रिमझिम बरखा बरसे
सबके मन को भाता मोर।


पँखों में रंगीला चँदा
पिकोक पिको बोले पुरजोर
बरखा जब हो जाए बंद तो
नाचना बंद कर देता मोर।।


किताब / दीनदयाल शर्मा


सुख-दु:ख में साथ,
निभाती रही किताब।


बुझे मन की बाती,
जलाती रही किताब।


जब कभी लगी प्यास,
बुझाती रही किताब।


मन जब हुआ उदास,
हँसाती रही किताब।


अंधेरे में भी राह,
दिखाती रही किताब।


अनगिनत खुशियां,
लुटाती रही किताब॥




मेरी न्यारी / / दीनदयाल शर्मा


नानी मेरी न्यारी है
सब दुनिया से प्यारी है।


मुझको रोज पढ़ाती है
होमवर्क करवाती है।
समझ ना आए कोई पाठ तो
बिन मारे समझाती है।


मीठे जल की झारी है
नानी मेरी न्यारी है।


सोने से पहले यह मुझको
लोरी रोज सुनाती है
नींद न आए मुझे कभी तो
सिर मेरा सहलाती है।


फूलों की फुलवारी है
नानी मेरी न्यारी है।
मामा-मामी, बहन और भाई
सारे आज्ञाकारी है।


घर नानी का, घर जैसा है
रंग-रंगीली क्यारी है
घर की छत है नानाजी
तो नानी चारदीवारी है।


नानी मेरी न्यारी है
सब दुनिया से प्यारी है।।


ता-ता थैया / दीनदयाल शर्मा


ता-ता थैया- ता-ता थैया
नदिया में चलती है नैया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
जंगल में चरती है गैया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
सड़कों पर चलता है पहिया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
राखी का बंधन है भैया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
पॉकेट मनी पांच रुपइया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
गीत सुरीला गाए सुरैया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
नहाती मिट्टी में गौरैया॥


ता-ता थैया- ता-ता थैया
हम जैसा न कोई गवैया॥


नया साल / दीनदयाल शर्मा


नया साल लेकर आया है
खुशियों का उपहार,
इक-दूजे में खुशियां बांटें
समझे हम त्यौहार।


जाति-पाँति और भेदभाव से,
यह दिन कोसों दूर।
दिनभर बाँटें प्रेम-प्यार के,
संदेशे भरपूर।
नया साल देता है सबको,
खुशियों का अम्बार।


तजें बुराई भीतर की हम,
दृढ़ संकल्प हमारे
दु:ख-सुख को अपनाएं मिलकर,
सबके काज संवारें।
नया साल फैलाता हरदम,
ठण्डी मस्त बयार।


भला ही सोचें, करें भलाई
जग में होगा नाम
सज्जनों ने आजन्म किया है
हरदम अच्छा काम।
नया साल बतलाता हमको,
सज्जनता का सार।।


अंक गणित / दीनदयाल शर्मा


अंग्रेजी,हिन्दी, सामाजिक
और विज्ञान समझ में आए
अंक गणित जब करने बैठंू
सारा दिमाग जाम हो जए।


सरल जोड़ भाग गुणा घटाओ
कर लेता हूँ जैसे तैसे
घुमा घुमा कर पूछे कोई
उसको हल करूं मैं कैसे


इतना बड़ा हो गया फिर भी
अब अंक गणित में जीरो
बाकी सारे काम करूं झट
दुनिया माने मुझको हीरो।।


- दीनदयाल शर्मा
10/22 आर.एच.बी.कॉलोनी,
हनुमानगढ़ जं. 335512, राज.


मोबाइल : 0941451666










Monday, October 27, 2014

बबन विधाता / दीनदयाल शर्मा



बबन विधाता / दीनदयाल शर्मा 

बबन विधाता लेके छाता,
निकल पड़े बरसात में।
फिसले ऐसे गिरे जोर से,
कैसे चलते रात में।

कीचड़ में भर गए थे कपड़े,
देखे बबन विधाता।
इसी बीच में उड़ गया उनका,
रंग-बिरंगा छाता।

उड़ते-उड़ते छाता उनका,
पहुंच गया नेपाल।
बबन विधाता भीग गए सारे,
हो गए वे बेहाल।

चला हवा का झोंका उल्टा ,
वापस आ गया छाता।
तान के ऊपर चल दिए अपने,
घर को बबन विधाता।।

Saturday, October 25, 2014

शिशु गीत / दीनदयाल शर्मा



शिशु गीत -


घोड़ा

लकड़ी का घोड़ा
बड़ा निगौड़ा
खड़ा रहता है
कभी न दौड़ा।


रसगुल्ला

गोल मटोल रसगुल्ला
रस से भरा रसगुल्ला
मैंने खाया रसगुल्ला
अहा! मीठा रसगुल्ला।


शेर

सर्कस में देखा था शेर
बड़े रौब से चलता शेर
डर से सबका बज गया बाजा
इसीलिए वह जंगल का राजा।


चिडिय़ा और बच्चे

चिडिय़ा के दो बच्चे प्यारे
सुंदर से वे न्यारे-न्यारे
बाहर से दाने वह लाती
उन दोनों को रोज खिलाती
बच्चे बड़े हो गए दोनों
इक दिन फुर्र हो गए दोनों।


तितली

घर में बनाई क्यारी
क्यारी में लगाए पौधे
पौधों पर आए फूल
फूलों पर तितली आई
घर में खुशियां छाई।।


मटर

हरी-हरी मटर
टमाटर लाल-लाल
देखो तुम मम्मी
हमारा कमाल।


रोटी

कम गीला आटा
रोटी गोल-गोल
कितनी अच्छी बनाती हूँ
बोल मम्मी बोल।


टीवी नानी

नानी मेरी प्यारी नानी
नहीं सुनाती कोई कहानी
फिर मैं करती हूं मनमानी
टीवी बनता मेरी नानी।


कट-मट

कट-मट-लट-पट
काम कर झटपट
चीं चपड़ मत कर
कर मत खटपट।


चरक चूं

चरक चूं भई चरक चूं
दिनभर काम मैं करती हूँ
थक गई हूँ आराम करूं
कोई मुझसे लड़ता क्यूँ ।


तबड़क-तबड़क

तबड़क-तबड़क घोड़ा दौड़े
सर-सर चलती कार
रेलगाड़ी छुक-छुक चलती
हम भी हैं तैयार।


बिजली

कड़क-कड़क कर बिजली कड़के
जब होती बरसात
गड़-गड़-गड़ गिरते ओले
दिन होता चाहे रात।


आराम

कच्ची-कच्ची मक्की
पक्के-पक्के आम
खा के डकार लो
फिर करो आराम।


मेरा बस्ता

मेरा बस्ता
भारी बस्ता
उठाऊं इसको
हालत खस्ता।


घंटी

जब स्कूल की बजती घंटी
राजू रोज लेट हो जाता
मैं तो सबसे पहले आता
मैडम-सर का प्यार मैं पाता।


गुल्ली-डंडा

सारा दिन वह उधम मचाता
खेले गुल्ली-डंडा
परीक्षा में नंबर मिलता
उसको केवल अंडा।


जेल-खेल

दिन भर पढऩा
लगता जेल
डान्स करूं
या खेेलूं खेल।


नादानी

स्कूल और घर पर नहीं सिखाता
मुझको कोई गीत कहानी
किससे सीखूंगा मैं बोलो
कैसे जाएगी नादानी।


किताब

ऐसी किताब दिला दो मुझको
पढ़कर खुश हो जाऊं
अच्छी-अच्छी बातें उसकी
मैं सबको बतलाऊं।


चटोरी

छोला, भटूरा, गोलगप्पा
मैगी रोज वह खाए
जब भी मिलते दोस्त उसको
चटोरी कह कर चिढ़ाए।


मटकूराम

मटक-मटक कर चलता देखो
कैसे मटकूराम
मना कभी नहीं करता देखो
कोई कह दो काम।


टोकरी

आलू की टोकरी
गोभी का फूल
हमसे मम्मी
हो गई भूल।


गुलगुला

गुल-गुल गुलगुला
मुझको तूं खिला
खा गया गरम-गरम
उसका मुंह जला।


चीं-पीं

चीं-पीं चट्टा
नींबू खट्टा
पढ़-पढ़-पढ़
बट्टा में बट्टा।


आटा-पाटा

आटा पाटा
कर तूं टाटा
रविवार को
सैर सपाटा।


मिरची

लम्बी-लम्बी मिरची
नींबू गोल-गोल
चुप क्यों बैठा है
बोल-बोल-बोल।


मेरा तोता

मेरा तोता
कभी न रोता
दिन में जागे
रात को सोता।


लाला-लाली

लाला औ' लाली
बैठो मत खाली
पढ़ो कुछ सीख लो
या बजाओ ताली।




- दीनदयाल शर्मा,
10 / 22 , आर. एच. बी. कॉलोनी,
हनुमानगढ़ ज. 335512 , राजस्थान ,
मोब. 09414514666

Friday, October 17, 2014

दीपों का त्यौहार / दीनदयाल शर्मा


दीपों का त्यौहार / दीनदयाल शर्मा

दीपों का त्यौहार दिवाली
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएँ।

छत्त पर लटक रहे हों जाले
इनको दूर हटाएँ,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ।

अनार, पटाखे, बम-फुलझडी,
चकरी खूब चलाएँ,
हलवा-पूड़ी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खाएँ।

सुन्दर-सुन्दर पहन के कपड़े
घर-घर मिलने जाएँ,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटे,
अपने सब बन जाएँ।

Saturday, October 11, 2014

गुड़िया / दीनदयाल शर्मा

अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरी एक कविता -
बालिकाओं को समर्पित ..

गुड़िया / दीनदयाल शर्मा
गुड़िया रोती ऊूँ - ऊूँ- ऊूँ
ना जाने रोती है क्यूँ
किसने इसको मारा है
या इसको फटकारा है
रोना अच्छी बात नहीं
फिर गुड़िया रोती है क्यूँ.
गुड़िया इसकी रूठ गई
या गुड़िया फिर टूट गई
टूटी को हम जोड़ेंगे
रूठी है तो रूठी क्यूँ..
गुड़िया को मनाएंगे
बार बार बहलाएंगे
कारण पूछें रोने का
गुड़िया तूं रोती है क्यूँ..
- दीनदयाल शर्मा, बाल साहित्यकार

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