प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, April 23, 2015

विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष

विश्व  पुस्तक दिवस पर विशेष -

किताब / दीनदयाल शर्मा 

सुख-दु:ख में साथ, 
निभाती रही किताब।

बुझे मन की बाती, 
जलाती रही किताब।

जब कभी लगी प्यास,
बुझाती रही किताब।

मन जब हुआ उदास,
हँसाती रही किताब।

अंधेरे में भी राह,
दिखाती रही किताब।

अनगिनत खुशियां,
लुटाती रही किताब॥












Monday, April 6, 2015

शेर / दीनदयाल शर्मा



शिशु गीत -


शेर / दीनदयाल शर्मा

शेर दहाड़ा खूब जोर से
अपना बल दिखलाया।
सुनी दहाड़ सब जीवों ने, तब
सबका दिल घबराया।


थर-थर लगे कांपने सारे,
सामने कोई न आया।
अपनी ताकत के बल पर, वह
वन राजा कहलाया।।

चँदा मामा / दीनदयाल शर्मा



शिशु गीत -

चँदा मामा / दीनदयाल शर्मा

आसमान में दिखते हो तुम,
रात को चँदा मामा। 
घटते-बढ़ते रहते हो तुम, 
क्यूँ करते हो ड्रामा। 


सूरज कभी न घटता-बढ़ता,
सदा एकसा रहता।
तुम भी सूरज बन जाओ ना,
मेरे प्यारे मामा।।




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