प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, July 28, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "मोबाइल "




मोबाइल 


माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।









Monday, July 26, 2010

दीनदयाल शर्मा की कविता "प्यारा कुत्ता "

प्यारा कुत्ता
मेरा प्यारा कुत्ता कालू ।
बालों से लगता है भालू ।।

प्यार करे तो पूँछ हिलाए ।
पैरों में लमलेट हो जाए ।।

दिन में सोता रहता हरदम ।
पूरी रात न लेता है दम ।।

खड़के से चौकस हो जाए ।
इधर-उधर नजरें दौड़ाए ।।

चोरों पर यह पड़ता भारी ।
सच्ची सजग है चौकीदारी ।।



Thursday, July 22, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "चूँ-चूँ चूहा"

चूँ-चूँ चूहा

चूँ-चूँ चूहा बोला- मम्मी,
मैं भी पतंग उड़ाऊँगा ।
लोहे-सी मज़बूत डोर से,
मैं भी पेच लड़ाऊँगा ।

मम्मी बोली- तुम बच्चे हो,
बात पेच की करते हो ।
बाहर बिल्ली घूम रही है,
क्या उससे नहीं डरते हो ?

चूँ-चूँ बोला- बिल्ली क्या है,
उसे करूँगा 'फेस'।
मैंने पहन रखी है मम्मी
काँटों वाली ड्रेस ।



Wednesday, July 21, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता "उल्टा-पुल्टा "

उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।

बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।

मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो 
छिप गया सूरज हो गई भोर।।



Sunday, July 18, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता-अकड़

अकड़ 
अकड़-अकड़ कर
क्यों चलते हो 
चूहे चिंटूराम,
ग़र बिल्ली ने 
देख लिया तो 
करेगी काम तमाम,

चूहा मुक्का तान कर बोला
नहीं डरूंगा दादी
मेरी भी अब हो गई है
इक बिल्ली से शादी।


दीनदयाल शर्मा की दो कविताएं


सपने और विश्वास

सपने तो लेते हैं हम सब, 
ऊंची रखते आस,
मिले सफलता उसको,
 जिसके मन में हो विश्वास।

बेमतलब की बात करें हम, 
अधकचरा है ज्ञान,
अपनी कमजोरी पर आख़िर , 
 क्यों नहीं देते ध्यान।
दोषी खुद हैं मंढें और पर, 
किसको आए रास।।

आगे बढ़ता देख न पाएं, 
भीतर उठती आग,
कहें चोर को चोरी कर तू, 
मालिक को कहें जाग।
कैसे हो कल्याण हमारा, 
चाहें और का नाश।।

अच्छा कभी न सोचेंगे हम, 
भाए न अच्छी बात
ऊंची-ऊंची फेंकने वालों, 
के हम रहते साथ।
लाखों की चाहत है अपनी, 
पाई नहीं है पास।।

आलस है हम सबका दुश्मन, 
इसको ना छोड़ेंगे
सरल मार्ग अपनाएं सारे, 
खुद को ना मोड़ेंगे।
अंधकूप में भटकेंगे तो, 
कैसे मिले उजास।।


समय नहीं कुछ कहने का

गलत काम में गुस्सा आता,
धीरज क्यों नहीं धरता मैं।
उम्मीदें पालूं  दूजों से, 
खुद करने से डरता मैं।।

आलस बहुत बुरी चीज है, 
किसको कैसे बतलाऊं।
आलस की नदिया में बैठा, 
अपनी गागर भरता मैं।।

समय की कीमत कब समझूंगा , 
समय निकल जाएगा तब।
समय सफलता कैसे देगा, 
कोशिशें ना करता मैं।।

सब कुछ जान लिया है मैंने, 
कुछ भी नहीं रहा बाकि।
मुझको कौन सिखा सकता है, 
अहंकार में मरता मैं।।

समय नहीं कुछ कहने का अब, 
खुद करलूं  तो अच्छा है।
सीख शरीर से उपजे सारी,
 बाहर क्यों विचरता मैं।।

Friday, July 16, 2010

दीनदयाल शर्मा की दो बाल कवितायेँ

मधुमक्खी
मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम ।
मेहनत से न डरती हो तुम ।।

फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।

भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।

वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।

ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।


ओ चिड़िया
ओ चिड़िया तुम कितनी प्यारी ।
साधारण-सी शक्ल तुम्हारी ।।


चीं-चीं कर आँगन में आती ।
सब बच्चों के मन को भाती ।।


भोली और लगती मासूम ।
जी करता तुमको लूँ चूम ।।


भाँति-भाँति के न्यारे-न्यारे ।
जीव-जंतु जहाँ रहते सारे ।।


तेरा घर  हम सबको भाए ।
तभी तो चिडिय़ाघर कहलाए ।।



Tuesday, July 6, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता 'बारिश'

बारिश का मौसम / दीनदयाल शर्मा

बारिश का मौसम है आया।
हम बच्चों के मन को भाया।।

'छु' हो गई गरमी सारी।
मारें हम मिलकर किलकारी।।

कागज की हम नाव चलाएं।
छप-छप नाचें और नचाएं।।

मजा आ गया तगड़ा भारी।
आंखों में आ गई खुमारी।।

गरम पकौड़ी मिलकर खाएं।
चना चबीना खूब चबाएं।।

गरम चाय की चुस्की प्यारी।
मिट गई मन की खुश्की सारी।।

बारिश का हम लुत्फ उठाएं।
सब मिलकर बच्चे बन जाएं।।


Saturday, July 3, 2010

दीनदयाल शर्मा की दो बाल कवितायेँ

नानी

नानी तू है कैसी नानी
नहीं सुनाती नई कहानी।

नानी बोली प्यारे नाती
नई कहानी मुझे न आती।

मेरे पास तो वही कहानी
एक था राजा एक थी रानी।

नई बातें कहाँ से लाऊँ
तेरा मन कैसे बहलाऊँ।

तुम जानो कम्प्यूटर बानी
तुम हो ज्ञानी के भी ज्ञानी।

मैं तो हूँ बस तेरी नानी।
तुम्हीं सुनाओ कोई कहानी।।

मोबाइल 
माँ, मैं भी मोबाइल लूँगा,
अच्छी-अच्छी बात करूँगा।

हर मौके पर काम यह आता,
संकट में साथी बन जाता।
होम-वर्क पर ध्यान मैं दूँगा,
पढऩे में पीछे न रहूँगा।

मेरी ख़बर चाहे कभी भी लेना,
एस० एम० एस० झट से कर देना।
स्कूल समय में रखूँगा बंद,
सदा रहूँगा मैं पाबंद।

कहाँ मैं आता कहाँ मैं जाता,
चिंता से तुझे मुक्ति दिलाता।
माँ धर तू मेरी बात पे ध्यान,
अब मोबाइल समय की शान।



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