प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

शिशु कविताएँ

शेर

हूँ ......हूँ .....करके
शेर दहाड़ा,
मंदिर में बज उठा 
नगाड़ा.



हाथी

यां ....यां ....कर
हाथी चिन्घाडा
जल में उगा था
एक सिंघाड़ा.



 बन्दर  

केवल खों - खों
करते बन्दर
 
जो जीते
कहलाये सिकंदर


घोड़ा

घोड़ा जोर से
हिनहिनाया,
हमने
अनुशासन अपनाया.




गधा

ढेंचू ढेंचू
गधा जो रेंका,
कचरा कूड़ेदान में
फेंका
 



भेड़ 

भें ....भें ....करके
बोली भेड़,
हम न किसी से
करेंगे छेड़.



बकरी 

में ....में ... कर
बकरी मिमियाई,
हमको भाती
खूब मिठाई.



 कुत्ता

भों भों करके
कुत्ता भोंका
आया इक
आंधी का झोंका.




बिल्ली  

बिल्ली बोली
म्याऊँ - म्याऊँ
दूध मलाई
डट के खाऊं.



 

प्यारा कुत्ता

मेरा कुत्ता
प्यारा कुत्ता
गरमी - सरदी
पहने जूता




रेलगाड़ी 

रेलगाड़ी का
टी - टी बोला
नहीं लगे
इसमें 
हिचकोला.


 
बस  

बस का होर्न
पों - पों बोला
नाचे हम 

 मस्तों का  टोला.




 पिचकारी

पापा मुझको
रंग दिला दो,
मोटी सी
पिचकारी ला दो.



पान 

आओ पापा
चलें दुकान
गुलकंद वाला
खाएं पान.




घंटी  

टन - टन - टनन
घंटी बोली,
हम सब करने लगे
 
ठिठोली






चूहा

चूँ चूँ करके
चूहा बोला
सूरज गरम
आग का गोला



 

मेंढक

टर्र - टर्र
मेंढक टर्राया
मेहनत से
ना मैं घबराया

 
 
बन्दर 

खों खों करता
मुंह बिचकाता
कूद लगाता
बन्दर भाता.



कुत्ता

कुत्ता गुस्से से
गुर्राता
मम्मी मुझे नहीं
वह भाता.



 
मेंढक 
मेंढक बरखा में  
टर्राता,  
 मम्मी मुझको खूब 
सुहाता



दादाजी

मोटे ताजे दादाजी
जब भी नकली दांत दिखाते
सारे बच्चे हाथी कह कर
हंसते-हंसते उन्हें चिढाते.



 
मौसी

चम्पू रोज
उड़ाता खिल्ली
मौसी को
कह देता बिल्ली




आजादी 

 आजादी दिवस को
अक्कू ने मनाया,
पिंजरे को खोला
और मीठू को उड़ाया.





निराला कुत्ता

मेरा कुत्ता है निराला
टेढ़ी पूँछ रंग है काला
सबको प्यार करता है
मेरे घर का है रखवाला


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