प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007

तत्कालीन शिक्षा मंत्री 
श्री बी.डी.कल्ला से 
पुरस्कार ग्रहण करते हुए
दीनदयाल शर्मा
Jain (P.G.) College,
Bikaner 1981

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  1. अनुदित रचनाएँ

    सपने / दीनदयाल शर्मा
    गाँव की गलियाँ
    और घरों की
    छतों पर खड़े
    खिड़की- झरोखों से
    झांकते
    और दीवारों पर बैठे
    रंग - बिरंगे,
    फटे - पुराने कपड़े पहने
    ये भोले - भाले बच्चे
    जो
    यात्रिओं की आँखों में
    ढूढ़ते हैं
    खोया हुआ प्यार
    अपने नन्हे - नन्हे
    हाथों को
    इधर - उधर
    हिलाकर.
    पर
    प्रत्युत्तर में
    उन्हें मिलता है
    केवल
    धुंएँ का गुब्बार
    जो ले जाता है
    उनके मखमली सपने
    और
    दे जाता है
    घृणा के बीज.

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