प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007


8 सितम्बर 2005 को 
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के 
अवसर पर बाल साहित्यकार 
दीनदयाल शर्मा को जयपुर के
 बिड़ला सभागार में सर्वाधिक 
पुस्तक दानदाता का राज्य 
स्तरीय पुरस्कार प्रदान 
करते हुए खेल मंत्री 
श्री युनूस खान ।

2 comments:

  1. किताब
    सुख दुःख में साथ, निभाती रही किताब,
    बुझे मन की बाती, जलाती रही किताब,
    अँधेरे में भी राह दिखाती रही किताब,
    जब कभी लगी प्यास, बुझाती रही किताब,
    मन जब हुआ उदास, हँसाती रही किताब,
    अनगिनत खुशियाँ, लुटाती रही किताब.
    -दीनदयाल शर्मा

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  2. गीत ख़ुशी के गाएँ
    आखर आखर सीखें हम सब,
    अपना ज्ञान बढायें.
    प्राणी हो कोई पीड़ा में,
    मिलकर दर्द मिटायें.
    सुख-दुःख आते ही रहते हैं
    उनसे ना घबराएँ.
    भटक जाये यदि कोई मुसाफिर
    राह उसे बतलाएं,
    मिलजुल कर हम रहना सीखें,
    गीत ख़ुशी के गाएँ
    -दीनदयाल शर्मा

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