प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
Wednesday, June 9, 2010
मेरे रेडियो नाटक- '....और थाली बज उठी'
'....और थाली बज उठी '
ऑडियो सुनने के लिए यहाँ प्ले करें
1 comment:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
June 9, 2010 at 8:26 PM
बधाई हो!
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बधाई हो!
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