प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, October 29, 2010

गजब की दिवाली / दीनदयाल शर्मा

गजब की दिवाली  

धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था ।

  सर्र-सर्र से
  चक्करी चलती
  फर्र-फर्र
  फुलझड़ी फर्राटा ।

सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।

  फटाक-फटाक
  चली जो गोली
  ऐसा भी 
  पिस्तौल बना था ।

ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।

  हुर्रे-हुर्रे, का
  शोर मचाकर
  बच्चों का टोला
  झूम रहा था ।

जगमग हो गई 
दुनिया सारी
ख़ुशियों का पहिया
घूम रहा था ।


-दीनदयाल शर्मा



2 comments:

  1. अरे वाह यह तो गज़ब दिवाली होगी...... हुर्रे

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