गजब की दिवाली
धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था ।
सर्र-सर्र से
चक्करी चलती
फर्र-फर्र
फुलझड़ी फर्राटा ।
सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।
फटाक-फटाक
चली जो गोली
ऐसा भी
पिस्तौल बना था ।
ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।
हुर्रे-हुर्रे, का
शोर मचाकर
बच्चों का टोला
झूम रहा था ।
जगमग हो गई
दुनिया सारी
ख़ुशियों का पहिया
घूम रहा था ।
सुंदर कविता.....
ReplyDeleteअरे वाह यह तो गज़ब दिवाली होगी...... हुर्रे
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