रावण
सालो-साल दशहरा आता
पुतला झट बन जाए।
बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।
रूप राम का धरकर कोई,
अग्निबाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!
मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
Bahut Sunder Rachna
ReplyDeletebaal kavita likhna bhi ek klaa hai .... bahut sunder ...!!
ReplyDeletemany many Thanks Dr.Monika Sharma ji & Harkeerat ji...
ReplyDeleteबहुत सुंदर .......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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