प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Tuesday, November 18, 2014

अपना घर / दीनदयाल शर्मा

हिंदी बाल कविता -


अपना घर / दीनदयाल शर्मा 



एक - एक ईंट जोड़कर हमने ,
बनाया अपना सुन्दर घर.

अपने घर में रहें सहज हम, 
दूजों के घर लगता डर.

बच्चे हों तो करते रौनक,
किलकारी से गूंजे घर. 

बिन बच्चों के मकां है केवल,
सूना जैसे हो खँडहर .

घर हो तो हम उड़ें आसमां
लग जाते हैं जैसे 'पर'

घर जैसा भी होता  घर है. 
जीवन उसमें करें बसर. 

आओ रलमिल बनायें सारे. 
इक दूजे का अपना घर..

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