हिंदी बाल कविता -
अपना घर / दीनदयाल शर्मा
एक - एक ईंट जोड़कर हमने ,
बनाया अपना सुन्दर घर.
अपने घर में रहें सहज हम,
दूजों के घर लगता डर.
बच्चे हों तो करते रौनक,
किलकारी से गूंजे घर.
बिन बच्चों के मकां है केवल,
सूना जैसे हो खँडहर .
घर हो तो हम उड़ें आसमां
लग जाते हैं जैसे 'पर'
घर जैसा भी होता घर है.
जीवन उसमें करें बसर.
आओ रलमिल बनायें सारे.
इक दूजे का अपना घर..
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