प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, January 4, 2015

सरदी आई / दीनदयाल शर्मा

सरदी आई / दीनदयाल शर्मा

सरदी आई ठंडक लाई
ओढें कंबल और रजाई

कोट स्वेटर टोपी मफ़लर
इन सबकी करते भरपाई..

ठंडी चीजें नहीं सुहाती
गरम गरम सबके मन भायी..

नहाने से डरते हम बच्चे
लगता जैसे आफ़त आई..

पंखे कूलर बंद कर दिये
अब हीटर की बारी आई..

गांवों में सब आग तापते
बैठे बैठे करें हथाई..

गज्जक मुंगफली लड्डू खा कर
चाय की प्याली खनकाई..

सूरज निकला धूप सुहाई
गली- गली में रौनक छाई...


1 comment:

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