विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष -
किताब / दीनदयाल शर्मा
सुख-दु:ख में साथ,
निभाती रही किताब।
बुझे मन की बाती,
जलाती रही किताब।
जब कभी लगी प्यास,
बुझाती रही किताब।
मन जब हुआ उदास,
हँसाती रही किताब।
अंधेरे में भी राह,
दिखाती रही किताब।
अनगिनत खुशियां,
लुटाती रही किताब॥
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