ख्यातनाम साहित्यकार श्रद्धेय डाॅ.अर्जुन देव चारण द्वारा पुस्तक में लिखी भूमिका : रेडियो नाटक के माध्यम से समाज को चेतन करने का सफल प्रयास
'जंग जारी है' श्री दीनदयाल शर्मा के नौ रेडियो नाटकों का संकलन है। बाल साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में पूरे देश में उनकी विशिष्ट पहचान है। उन्होंने हिन्दी एवं राजस्थानी दोनों भाषाओं में बच्चों के कई नाटक लिखे हैं जो स्कूलों में खेले भी जाते हैं। इस नाते यह कहा जा सकता है कि उन्हें रंगमंच का ज्ञान भी है। नाटक और नाट्य के अन्तर को समझते हुए नाटक लिखने पर ही वह नाटक मंचन के योग्य हो सकता है। किसी भी नाटक की सही पहचान उसके मंचन से ही संभव हो पाती है। रेडियो नाटक मंचीय नाटक से थोड़ी भिन्न विधा है। इसमें परोक्ष को प्रत्यक्ष की तरह प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी नाटककार को निभानी पड़ती है। जहाँ नाट्य प्रस्तुति में नाटककार को अतिरिक्त कुछ भी नहीं करना पड़ता है क्योंकि जो कुछ घटित हो रहा है वह प्रेक्षक के सामने प्रत्यक्ष है किन्तु रेडियो नाटक तो सुना जा रहा है इस तरह से देखें तो वह नाटक के मूल सूत्र को ही पुन: उलट कर प्रस्तुत करता है।
नाटक को श्रव्य दृश्य काव्य माना गया है अर्थात् एक ऐसी विधा जो सुनने के साथ देखी भी जाती हो। साहित्य की अन्य विधाएँ सिर्फ पढऩे या सुनने तक ही सीमित होती हैं किन्तु नाटक इसीलिए विशिष्ट होता है कि वह सुनने के साथ ही देखा भी जाता है किन्तु रेडियो नाटक में नाटककार की चुनौती यही होती है कि वह देखने को भी सुनने के माध्यम से ही प्रस्तुत करे। अर्थात् उसके संवादों में दृश्य आ जाए या दृश्य रचा जाए जिससे उसे सुनने वाले को देखने का आनन्द भी मिलता रहे। रेडियो नाटक में इसीलिए ध्वनि प्रभाव का महत्त्व अधिक होता है।
जिस तरह से नाटक को नाट्य बनाने में निर्देशक एवं अभिनेता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है उसी तरह रेडियो नाटक को नाट्य में प्रस्तुत करने में संवाद बोलने वाले एवं उसे प्रस्तुत करने वाले प्रस्तोता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। संवाद अदायगी में सिर्फ टोन से ही सब कुछ सम्प्रेषित करना होता है। नाटक में अभिनय के चार प्रकार माने गये हैं वाचिक, आंगिक, सात्विक एवं आहार्य। इन चारों के योग से ही नाट्य प्रस्तुति संभव हो पाती है। किन्तु रेडियो नाटक में अभिनय का सिर्फ एक ही प्रकार काम में आता है और वह है वाचिक अभिनय इसलिए वहाँ संवाद बोलने वाले व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अभिनय के अन्य तीन प्रकारों को केवल अपने वाचन से श्रोता तक पहुंचाए। इसी तरह से रेडियो नाटक लिखने वाले रचनाकार के सामने भी यह चुनौती होती है कि वह संवादों में गति, क्रिया, रस को गूंथ दे।
श्री दीनदयाल शर्मा ने अपने इन नाटकों में समाज में व्याप्त तत्कालीन कुरीतियों, विसंगतियों पर चोट की है। इस तरह से ये नाटक अपने सुनने वाले को एक आदर्श समाज का प्रतिबिम्ब दिखाने की कोशिश करते हैं। 'जंग जारी है ' से तात्पर्य यही है कि समाज में इन बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई अभी भी जारी है क्योंकि जब तक समाज की छोटी से छोटी इकाई अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति इस बात को नहीं समझेगा तब तक ये बुराइयाँ समाप्त नहीं होगी। अच्छी बात यह है कि रेडियो की पहुंच हजारों लाखों तक नहीं बल्कि करोड़ों तक होती है इसलिए ये रेडियो नाटक अपने मकसद में कामयाब होंगे और समाज में व्याप्त कन्या भ्रूण हत्या, एड्स जैसी गंभीर बीमारियां, स्त्रियों के प्रति किये जाने वाले अत्याचार एवं नशे के दुष्प्रभाव के विरुद्ध एक सशक्त आवाज बनकर उभरेंगे। इन सामाजिक बुराइयों के बारे में समाज को चेतन करने के प्रयास इन रेडियो नाटकों से निस्सन्देह सफल होंगे। इन रेडियो नाटकों के लेखन के लिए श्री दीनदयाल शर्मा को साधुवाद देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में और अच्छी रचनाएं वे अपने समाज तक पहुंचाएंगे।
- डॉ. अर्जुन देव चारण
Thanks for sharing this post very helpful article
ReplyDeleteclick here