प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007

चित्तौड़गढ़ में आयोजित समारोह में 
राजस्थानी बाल साहित्य 
कृति "म्हारा गुरुजी" 
के लिए दीनदयाल शर्मा को 
चंद्रसिंह बिरकाळी 
बाल साहित्य पुरस्कार 
प्रदान करते हुए 
वरिष्ठ साहित्यकार 
श्री ओमानंद सरस्वती। 
साथ हैं देवपुत्र के संपादक 
श्री कृष्णकुमार अष्ठाना, 
इंदौर, बाल साहित्यकार 
राजकुमार जैन 'राजन', 
चित्तौड़गढ़ व अन्य। 
सन् 2001

2 comments:

  1. अनुदित रचनाएँ

    सपने / दीनदयाल शर्मा
    गाँव की गलियाँ
    और घरों की
    छतों पर खड़े
    खिड़की- झरोखों से
    झांकते
    और दीवारों पर बैठे
    रंग - बिरंगे,
    फटे - पुराने कपड़े पहने
    ये भोले - भाले बच्चे
    जो
    यात्रिओं की आँखों में
    ढूढ़ते हैं
    खोया हुआ प्यार
    अपने नन्हे - नन्हे
    हाथों को
    इधर - उधर
    हिलाकर.
    पर
    प्रत्युत्तर में
    उन्हें मिलता है
    केवल
    धुंएँ का गुब्बार
    जो ले जाता है
    उनके मखमली सपने
    और
    दे जाता है
    घृणा के बीज.

    अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

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  2. सर आपकी सभी कवितायेँ पढ़ीं एक से एक अच्छी लगीं. मुझे तो बाल कवितायेँ लिखना बड़ा मुश्किल काम लगता है क्योंकि बच्चों की कविता लिखने के लिए उनके मानसिक स्तर तक आना पड़ता है नहींतो कोई भी कोई उंच नीच हो सकती हैजो बच्चों की भावनाओं पर असर कर सकती हैं. पर आप तो ये काम बड़ी सहजता से करते हैं मैंने भी कुछ बाल कवितायेँ लिखी थीं. कुछ तो वाकई अच्छी बन गयीं पर आगे मैंने हथियार डाल दिए. आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन है

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