प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007

जुलाई 2003 को कोलकाता की 
साहित्यिक व सामाजिक संस्था 
मनीषिका की ओर से दीनदयाल शर्मा को 
सम्मानित करते हुए अतिथिगण।

2 comments:

  1. बहुत अच्‍छी लगी सब खिलखिलाते मासूम बच्‍चों की हंसी की तरह सुकून देती आपकी ये बात कविताएं ...नमन ।।

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