प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Monday, May 17, 2010




इसके बिन है सरकस सूना,
दर्शक एक न आए।
उल्टे-सीधे कपड़े पहने,
करतब ख़ूब दिखाए।

गुमसुम कभी न देखा इसको,
हर पल यह मुस्काए।
ख़ुद तो हँसता ही रहता है,
सबको ख़ूब हँसाए।

गिरते-गिरते बच जाता यह,
पल-पल में इतराए।
जोकर ही हो सकता है, जो
सबके मन को भाए।


7 comments:

  1. अंकल जी..बहुत प्यारी बाल कविता..पढ़कर मजा आ गया...बधाई.
    _______________
    'पाखी की दुनिया' में मेरी ड्राइंग देखें...

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  2. हा..हा..हा...जोकर के रूप में आपका चित्र भी बड़ा मजेदार..मयंक दादा जी ने मन से बनाया है...
    _______________
    'पाखी की दुनिया' में मेरी ड्राइंग देखें...

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  3. Bhai saab ! BLOG APNI RANGAT ME AA GAYA HAI

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  4. सुन्दर बाल कविता है.... जोकर तो अव्वल है.

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  5. अब लगता है 'डी डी' का ब्लॉग है. चित्र तो कमाल का है......कविता भी रच डाली....कवि-वर.......... लग रहा है नियमित 'विज़िट' करनी पड़ेगी... बधाई.

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  6. वाह जी वाह, बहुत खूब दीनदयाल जी.
    चित्र सुंदर है.
    कविता भी खूब.
    बधाई.

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