उल्लू
उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अंधियारा।
लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
तीन लोक की सैर कराए।
हलधर का यह साथ निभाता,
चूहों को यह चट कर जाता।
पुतली को ज्यादा फैलाए,
दूर-दूर इसको दिख जाए।
पीछे भी यह देखे पूरा,
इसको पकड़ न पाए जमूरा।
जग में सभी जगह मिल जाता,
गिनती में यह घटता जाता।
ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहां गए उल्लू नादान।।
दीन दियाल जी,
ReplyDeleteबहुत ही सही विष्या चुना है.....
उल्लू........
गिनती में यह घटता जाता।
ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहां गए उल्लू नादान.....
यही तो सोचने की बात है.?????
कौए और उल्लू लुपत होते जा रहे हैं....चिन्ता की बात
है....हमारा एकोलोजीकल सिस्टम बिगड़ता जा रहा है।
पढ़ने में मन खूब लगाना!
ReplyDeleteकभी न उल्लू तुम कहलाना!!
वाह ! क्या बात है!
ReplyDeleteआपकी हर बाल कविताएं शानदार और जानदार होती है
kya bat hai
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