प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, June 16, 2010

दीनदयाल शर्मा की बाल कविता - उल्लू

उल्लू

उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अंधियारा। 

लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
तीन लोक की सैर कराए।

हलधर का यह साथ निभाता,
चूहों को यह चट कर जाता।

पुतली को ज्यादा फैलाए,
दूर-दूर इसको दिख जाए।

पीछे भी यह देखे पूरा,
इसको पकड़ न पाए जमूरा।

जग में सभी जगह मिल जाता,
गिनती में यह घटता जाता।

ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहां गए उल्लू नादान।।

4 comments:

  1. दीन दियाल जी,

    बहुत ही सही विष्या चुना है.....

    उल्लू........
    गिनती में यह घटता जाता।
    ज्ञानीजन सारे परेशान,
    कहां गए उल्लू नादान.....

    यही तो सोचने की बात है.?????

    कौए और उल्लू लुपत होते जा रहे हैं....चिन्ता की बात

    है....हमारा एकोलोजीकल सिस्टम बिगड़ता जा रहा है।

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  2. पढ़ने में मन खूब लगाना!
    कभी न उल्लू तुम कहलाना!!

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  3. वाह ! क्या बात है!
    आपकी हर बाल कविताएं शानदार और जानदार होती है

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