प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Tuesday, August 10, 2010

दीनदयाल शर्मा की 2 शिशु कवितायेँ



चूहा
चूहा आया, चूहा आया,
चूँ-चूँ करता चूहा आया।

पूँछ हिलाता चूहा आया
मूँछ हिलाता चूहा आया।

देखो वह कितना फुर्तीला
कोई उसको पकड़ न पाया।



बिल्ली
बिल्ली आई, बिल्ली आई,
पूँछ हिलाती बिल्ली आई।

देखो दीदी! देखो भाई!
मूँछ हिलाती बिल्ली आई।

चुपके चुपके बिल्ली आई,
खा गई सारी रस मलाई।


5 comments:

  1. चुपके चुपके बिल्ली आई,
    खा गई सारी रस मलाई।
    सुंदर कवितायेँ, बधायी स्वीकारें

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  2. बाऊ जी,
    बहुत खूब!
    तीसरी भी लिखिए..... जिसमें टॉम और जेरी का आमना-सामना हो!
    आशीष

    --
    www.myexperimentswithloveandlife.blogspot.com

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  3. बच्चों पर कविता लिखना सहज नहीं है. इसके लिए बाल मन भी होना चाहिए. निश्चित रूप से आपका यह अनवरत प्रयास प्रशंसनीय है.

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  4. सम्मानिय दीनदयाल जी
    सादर प्रणाम !
    आप ने तो चूहे और बिल्ली को एक साथ प्रस्तुत कर दिया , जो चूहा देख भी मलाई को बात करता है सका हारी बिल्ली को नमन ! आप के बाल रचनाये देख हमे नुर्सेरी कि क्लास याद आने लग गयी ,
    बधाई !
    आभार !

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  5. deendayal ji chuhe billi ki yeh kavita bachcho ko bahut pasand aayi.thanks to post ....keep writing.

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