चिकोटियां / दीनदयाल शर्मा
खत्म होने लगा सैंस
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
गिर गए दाम
आँधी के आम।
खत्म होने से ना डर
चींटी के आ गए पर।
रहा बात पे अड़ा
चिकना घड़ा।
धन बना न दूना
लगा गया चूना।
बातों का कहर
उगले जहर।
शक है लाला
दाल में काला।
मत बन होशियार
पंख मत मार।
बिक गए बाट
उलट दी टाट।
नहीं है अनाड़ी
पेट में दाढ़ी।
पुलिस ने डंडे मारे
दिन में दिख गए तारे।
पेट दिखा बाई
मैं मौहल्ले की दाई।
होगा वही जो होना
घोड़े बेचकर सोना।
मिल गई गोटी
हाथ में चोटी।
जीत गया जवान
जान में आ गई जान।
बेमतलब ना बोल
जुबान को तौल।
जीत ली लंका
बज गया डंका।
मत कर रीस
दाँत पीस।
ऐसे मत कुलबुला
पानी का बुलबुला।
मिट गए ठाट
अब पेट काट।
दोस्ती तगड़ी
बदल ली पगड़ी।
मंत्री बना लल्ला
पकड़ लिया पल्ला।
मान ली हार
डाले हथियार।
नहीं करना काम
सुबह-शाम, सुबह-शाम।
मीचे अक्खियां
मारे मक्खियां।
अब मत हो लाल
बासी कढ़ी में उबाल
चल गई चाल
गल गई दाल।।
अध्यक्ष,
राजस्थान साहित्य परिषद्,
हनुमानगढ़ संगम-335512
09414514666
09414514666
सभपी चिकौटियाँ दमदार है जी!
ReplyDeleteसारे याद हो गए...
ReplyDelete:)
इसे तो बार-बार पढने का मन कह रहा है...मजेदार.
ReplyDelete_________________________
'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
खूब मजा आया....
ReplyDeleteमत कर रीस
ReplyDeleteदाँत पीस।
इसे इस तरह होना चाहिये :
मत कर रीस
दाँत ना पीस.
काफी मजेदार हैं बच्चों को याद करा कर पूरा मज़ा लिया जा सकता है.
इतने स्वादिष्ट हैं कि बच्चा बनकर ही स्वाद लिया जा सकता है. मैंने तो पूरा लिया है.
बहुत ही मज़ा आया पढ़कर.......
ReplyDeleteबच्चों को समझाने व याद करवाने का आसान तरीका बताया है आपने ।
बधाई ।
I like this....interesting !!!
ReplyDeleteI have learned a lot .
Deendayal Uncle....I want to say you a VERY SPECIAL THANKS for publishing my poem in TAABAR TOLI. ....that's really wonderful. It boosts me up to write more and more.
Thanks again.
Supreet
इस बार की नन्ही कवितायेँ साइज़ में नन्ही जरूर हैं मगर अर्थों में काफी प्रौढ़ हैं , बड़ी हैं !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, शानदार और मज़ेदार लगा! उम्दा प्रस्तुती!
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