प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, September 29, 2010

नन्ही कवितायेँ - 2 / दीनदयाल शर्मा



चिकोटियां - 2 / दीनदयाल शर्मा 


कैसे बदले तकदीर 
लकीर का फ़कीर. 

बिक गये बा
रो कर दिन काट.

मिट गयी साख
जीवन खाक.

हाथ साफ़ 
जेब साफ़.

मत रह दंग
बदल लिया रंग.

गायब मनका
माथा ठनका.

गंवार के लिए ज्ञान सज़ा
भैंस  के आगे बीन बजा.

साख है मनी
बात का धनी.

चला गया जेल
छिड़कता था तेल.  

बात में खोटा
बेपेंदे का लोटा.

कंजूसों से चन्दा
अक्ल का अंधा.

ख़ुशी से मिलना
बत्तीसी खिलना.

रिएक्सन कर गई दवाई
उड़ने लगी हवाई.

कंजूस का खेल
बालू से तेल.

बढ़ गई राड़
राई का पहाड़. 

कट गई चुटिया 
डूब गई लुटिया.

बड़ा संकट छा गया
छठी का दूध याद आ गया.

हाथ में हाथ
चोली - दामन का साथ.

रहे दिल्ली 
घास छिल्ली.

मुंह सी लिया
गुस्सा पी लिया..


अध्यक्ष 
राजस्थान साहित्य परिषद्, 
हनुमानगढ़ - 335512
09414514666

3 comments:

  1. चिकोटियाँ तो बहुत ही बढ़िया है!

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  2. यह बड़ी चुटकीदार चिकोटियां हैं...... अंकल बड़ा मज़ा आया पढ़कर

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  3. खूब मजेदार...मजा आ गया.

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