चिकोटियां / दीनदयाल शर्मा
बेटा चंगा
घर में गंगा.
बेटा निकम्मा
जवानी में दमा.
अमीर - गरीब का अंतर
कोई न चले मंतर.
बेरोजगार युवा
जहाज का कौवा.
पानी के लिए रोये
जान से हाथ धोये.
नहीं दिलाये जेवर
चढ़ा लिए तेवर.
बढ़ गई राड़
दिन पहाड़.
गीदड़ बना शेर
दिनों का फेर.
पूरे हुए अरमान
दिमाग आसमान.
कभी मत राड़ कर
वो देगा छप्पर फाड़कर.
अब चन्दन घिस
टांय टांय फ़ीस.
अंगूठी नग जड़ा
पैरों पर खड़ा.
बंदूकें तन गई
जान पर बन गई.
कितना ही समझादो
मिट्टी का माधो.
मेरा वही है शौहर
लगा दी मोहर.
मिट गया स्यापा
रस्ता नापा.
रोज हाये हाये
रो के दिन बिताये.
तुरत फुरत का ज़माना
हथेली पे सरसों उगाना.
कैसे असर करे दवा
लग गई हवा.
काम में आड़ू
फेर दी झाड़ू.
दिनभर दौड़
जोड़ - तोड़.
खुद से लड़
मत खोद जड़.
चोरी पकड़ में आई
उड़ने लगी हवाई.
रिजाई नहीं है छोरे
क्यूं डाले वो डोरे.
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पहली बार आपका ब्लाग देखा, बहुत अच्छा लगा। सभी चिकोटियाँ एक से बढ कर एक हैं। धन्यवाद।
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