प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, October 13, 2010

अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा

अक्कड़-बक्कड़ 

अक्कड़-बक्कड़ बोकरी
बाबाजी की टोकरी ।

टोकरी से निकला बंदर
बंदर ने मारी किलकारी
किलकारी से हो गया शोर
शोर मचाते आ गए बच्चे
बच्चे सारे मन के कच्चे

कच्चे-कच्चे खा गए आम
आम के आम गुठली के दाम
दाम बढ़े हो गई महंगाई
महंगाई में पड़े न पार
पार करें हम कैसे नदिया
नदिया में नैया बेकार

बेकार भी हो गई पेटी
पेटी में ना पड़ते वोट
वोट मशीनों में है बटन
बटन दबाओ पड़ गए वोट
वोट से बन गए सारे नेता
नेता भी लगते अभिनेता

अभिनेता है मंच पे सारे
सारे मिलकर दिखाते खेल
खेल देखते हैं हम लोग
लोग करें सब अपनी-अपनी
अपनी डफली अपना राग

राग अलापें अजब-गजब हम
हम रहते नहीं रलमिल सारे
सारे मिलकर हो जाएँ एक
एक-एक मिल बनेंगे ताकत
ताकत सफलता लाएगी
लाएगी खुशियाँ हर घर-घर
घर-घर दीप जलाएगी ।

- दीनदयाल शर्मा



2 comments:

  1. बहुत सुंदर बाल कविता रची आपने.....प्यारी रचना

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए