रावण
सालो-साल दशहरा आता
पुतला झट बन जाए।
बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।
रूप राम का धरकर कोई,
अग्निबाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!
मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
अपने भीतर नहीं झाँकते,
खुद को राम कहाए।
सबके मन में बैठा रावण,
इसको कौन मिटाए।
कितनी प्यारी बाल कविता रची है आपने.... रावण को लेकर
ReplyDeleteजिसमे इतनी अच्छी सीख भी है....
प्यारी सी कविता...बढ़िया लगी.
ReplyDeleteनवरात्र और दशहरा...धूमधाम वाले दिन आए...बधाई !!
raavan ke upar atisunder rachna.aapko vijaydashmi ki dhero badhai.
ReplyDeletereally very good poem in least possible words................great!!!!!!!!
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