प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, October 13, 2010

रावण / दीनदयाल शर्मा


रावण

सालो-साल दशहरा आता


पुतला झट बन जाए।

बँधा हुआ रस्सी से रावण
खड़ा-खड़ा मुस्काए।
चाहे हो तो करे ख़ात्मा,
राम कहाँ से आए।

रूप राम का धरकर कोई,
अग्निबाण चलाए।
धू-धू करके राख हो गया,
नकली रावण हाय!

मिलकर खुशियाँ बाँटें सारे,
नाचें और नचाएँ।
अपने भीतर नहीं झाँकते,
खुद को राम कहाए।

सबके मन में बैठा रावण,
इसको कौन मिटाए।


-दीनदयाल शर्मा







4 comments:

  1. कितनी प्यारी बाल कविता रची है आपने.... रावण को लेकर

    जिसमे इतनी अच्छी सीख भी है....

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  2. प्यारी सी कविता...बढ़िया लगी.

    नवरात्र और दशहरा...धूमधाम वाले दिन आए...बधाई !!

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  3. raavan ke upar atisunder rachna.aapko vijaydashmi ki dhero badhai.

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  4. really very good poem in least possible words................great!!!!!!!!

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