प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, October 22, 2010

छह शिशु कविताएँ / दीनदयाल शर्मा

1.

मक्खियाँ भिनभिनाती हैं,
मच्छर गुनगुनाते हैं
चुपचाप उड़ती है तितली
भँवरे गीत सुनाते हैं|
2.

कुत्ते भौंकते भों-भों-भों,
गाय और बैल रंभाते हैं.
गधे रेंकते ढेंचूँ-ढेंचूँ 
घोड़े हिनहिनाते हैं।

3. इन्द्रधनुष 

बरखा जैसे ही हो गई बंद 
फ़ैली धरा पे हवा सुगंध 
सूरज की विपरीत दिशा में 
खड़ा था सतरंगी पाबन्द।

4. बादल

आसमान में छाए बदल
पानी भर-भर लाए बादल
रिमझिम-रिमझिम बरखा करते
सबके मन को भाए बादल.

5. मोर

आसमान में बादल आते
मोर नाचते सबको भाते
सबका लेते हैं चितचोर
कितने सुन्दर लगते मोर।

6.

म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली करती 
चूहा चूँ चूँ करता है
कुकडू कूँ की बांग लगाता,
मुर्गा जल्दी उठता है।

3 comments:

  1. अरे बाह!
    यह शिशु हीत तो अनुपम हैं!

    ReplyDelete
  2. अरे वाह....बड़ी प्यारी कविता.... दीनदयाल अंकल

    ReplyDelete
  3. ना ख़ुशी ना गम बच्चो के बगैर ....क्या हकीकत कहें..क्या तो फसाना....

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए