प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, December 5, 2010

दीनदयाल शर्मा की राजस्थानी कविताएं


दीनदयाल शर्मा की राजस्थानी कविताएं

टाबर - 1 

टाबर हांसै-मुळकै
अर
करै मीठी-मीठी बातां
टाबर 
सदांईं बोलै
सांच

आपां
टाबरां सूं  सीखां
आपां
टाबरां ज्यूं दीखां।

टाबर - 2

टाबर सूं 
कोई
क्यूं नीं 
करै बात

स्यात
इण कारण
कै
टाबर री
हरेक बात में
हुवै सुवाल।

टाबर - 3

टाबर
मार खाण रै
थोड़सीक ताळ पछै
हुज्यै
बीस्या रा बीस्या

टाबर
नीं बांधै गांठ

अर आपां
छोटी सी बात माथै
बांधल्यां घुळगांठ।

टाबर -4 

टाबरां नै
नीं खेलणद्यै
मा-बाप
माटी में


माटी सूं 
कियां हुवै मोह
टाबरां नै

स्यात 
इणी कारण
चल्याजै
थोड़साक बड्डा हुंवतांईं 
टाबरिया परदेस।

टाबर - 5

टाबर 
कित्ता बोलै सांच
नीं जाणै
बणावटी बातां
जात-पांत 

अर 
भेदभाव भी
नीं जाणै
टाबर

स्यात जदी हुवै
टाबर 
भगवान रौ रूप।

3 comments:

  1. कित्ती प्यारी कविता...बधाई.
    ______________
    'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस .

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