प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, November 28, 2010

समर्पण / दीनदयाल शर्मा



समर्पण
माँ
बहिन 
बीवी
बेटी
और न जाने
कितने रूपों में 
तू
समर्पित है
तेरा जीवन 
सबके लिए अर्पित है
ममता उड़ेलती 
प्यार बांटती 
तू
अंतत: 
बंट जाती है  
पञ्च तत्वों में 
और 
हो जाती है लीन
ब्रह्म में 
बुनती ताना - बाना
नारी ! 
तुझे हर रूप में 
पड़ा है 
कड़वा घूँट पीना 
फिर भी 
छोड़ा नहीं है 
तूने 
बार- बार जीना..
- दीनदयाल शर्मा 

(फोटो में बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा और बड़ी बेटी रितुप्रिया शर्मा )

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