समर्पण
माँ
बहिन
बीवी
बेटी
और न जाने
कितने रूपों में
तू
समर्पित है
तेरा जीवन
सबके लिए अर्पित है
ममता उड़ेलती
प्यार बांटती
तू
अंतत:
बंट जाती है
पञ्च तत्वों में
और
हो जाती है लीन
ब्रह्म में
बुनती ताना - बाना
नारी !
तुझे हर रूप में
पड़ा है
कड़वा घूँट पीना
फिर भी
छोड़ा नहीं है
तूने
बार- बार जीना..
- दीनदयाल शर्मा
(फोटो में बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा और बड़ी बेटी रितुप्रिया शर्मा )
बहुत भावपूर्ण और सार्थक रचना .....
ReplyDeleteअच्छी कविता .....
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