प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, January 16, 2011

कर्म ही पूजा / दीनदयाल शर्मा


कर्म ही पूजा 

कितना सारा काम करूँ मैं
फिर भी गधा कहाता
किससे कहूँ मैं पीड़ा अपनी
किसे नियम बतलाता।

लादो चाहे कितना बोझा
चुपचाप लदवाता
मैं भी करूँ आराम कभी तो
मन में मेरे आता।

शीतल अष्टमी के दिन केवल
अपनी सेवा पाता
बाकी दिन मैं मेहनत करता
नज़र न कभी चुराता।

खाना जैसा देते मुझको
चुपचाप मैं खाता
शिकवे-शिकायत कभी न करता
नखरे न दिखलाता।

मैं जिसकी करता हूँ सेवा
समझूँ उसको दाता
कर्म करूँ गीता भी कहती
कर्म से मेरा नाता ।।

- दीनदयाल शर्मा


3 comments:

  1. ओह कितने सीधे साधे हैं आप गधे जी ...... सुंदर कविता दीनदयाल अंकल....

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  2. सुन्दर कविता

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