माँ
अठारह जनवरी ग्यारह को,
चली गई थी माँ।
बचपन मेरा ले गई,
मुझे बड़ा कर गई माँ।।
दीनू दीनूड़ा दीनदयाल,
कह पुकारती थी माँ।
गोद में सिर टेकता,
तो दुलारती थी माँ।।
इक माँ ही गुरु थी मेरी,
सच्ची राह दिखाती थी।
करता था गिले-शिकवे,
तो मुझे समझाती थी।।
तेईस जनवरी दस को,
इक भाई चला जवाँ।
बेटे के बिछोह से,
तब भर गई थी माँ।।
इक साल सदमा ढोया,
ना सहन पाई माँ।
दिल बिंध गया था उसका,
थे रह गये निशाँ।।
बारह मार्च छ: की भोर,
पिताजी चले गये।
कहती थी मुझे छोड़कर,
वे चले गये कहाँ।।
साथी से पलभर कभी,
न दूर हुई थी माँ।
अब चली गई है माँ,
अनाथ कर गई है माँ।।
-दीनदयाल शर्मा,
बाल साहित्यकार
बडो का हाथ हमारे सिर पर सदा बना रहे यही कमना हम उमर भर करते है.
ReplyDeleteमगर जो आया है उस ने ऊपर वाले के हुकम के अनुसार जाना भी होता है, यह तो हम भूल ही जाते है !
हम उस ईश्वर से यही प्रार्थना करते है कि आप को इस कठिन समय मे बल दे और शक्ति दे ताकि आप अपने मा-बाप के सपने पूरे कर सको.
आपकी माता जी का जाना काफी दुखद रहा...श्रद्धांजलि !!
ReplyDeleteभाई साब प्रणाम !
ReplyDeleteबेहद दर्द होता है जब कोई अपना हमे से सदा के लिए बिछुड़ जाता है , वो भी एक इतने अंतराल के बाद कि एक ज़ख़्म भरे नहीं कि दुसरा ज़ख़्म हो जाए , मगर ये विधि का विधान है कि ना चाहते हुए भी सहन करण पड़ता है , जा चाहते हुए भी हमे बड़ा बनना पड़ता है , ये ही हम सब कामना कर सकते है कि इश्वर उनकी पुण्य आत्मा को शांति प्रदान करे , मोक्ष प्रदान करे ! उनके दिए सद विचार संस्कार हम संझोये रखे ,
ओम शान्ति शान्ति !
माँ बिना जीवन में क्या बच जाता है.... आपके भाव समझ सकती हूँ..... हृदयस्पर्शी भाव हैं ....
ReplyDeleteमाताजी को नमन ...
बड़े-बुज़ुर्गों के बिछड़ जाने का दुःख
ReplyDeleteबहुत बड़ा होता है ,,,,
उनकी भरपूर यादें और वात्सल्य
धरोहर बन कर सदा साथ रहना चाहिए .
माता जी को विनम्र श्रद्धांजलि ..
ReplyDeleteTU KITANI ACHHI HAI;
ReplyDeleteTU KITANI BHOLI HAI!
PYARI PYARI HAI,
O MAA ! O MAA!!
MAI MUSKAYA,
TU MUSKAI!
MAI ROYA
TU ROI !!
MERE HASNE PE;
MERE RONE PE !
TU BALIHARI !!
दीनदयाल शर्मा जी!
ReplyDeleteमाँ ममता का है खजाना,
बाप सिर पर शामियाना,
बड़ा ही कष्टदायक है,
दोनों का बिछुड़ जाना॥
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इस आघात से आप उबर जाएं।
यही मेरी आपके लिए हैं दुआएं॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी