प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Tuesday, March 29, 2011

बाल पहेलियाँ / दीनदयाल शर्मा

१.
जंगल में हो या पिंजरे में
रौब सदा दिखलाता,
मांसाहारी भोजन जिसका
वनराजा कहलाता।

२.
गोल - गोल है जिसकी आँखें
भाता नहीं उजाला,
दिन में सोता रहता हरदम
रात विचरने वाला।

३.
हमने देखा अजीब अचम्भा
पैर हैं जैसे कोई खम्भा
थुलथुल काया बड़े हैं कान
सूंड इसकी होती पहचान।

४.
सरस्वती की सफ़ेद सवारी
मोती जिनको भाते,
करते अलग दूध से पानी
बोलो कौन कहाते ?

५.
कान बड़े हैं काया छोटी
कोमल - कोमल बाल,
चौकस इतना पकड़ सके ना
बड़ी तेज़ है चाल|



1 comment:

  1. बहुत सुंदर ...सभी बाल पहेलियाँ बड़ी अच्छी लगीं...

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