प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Friday, April 1, 2011

उल्लू / दीनदयाल शर्मा

उल्लू
 उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अँधियारा ।
लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
तीन लोक की सैर कराए ।

हलधर का यह साथ निभाता,
चूहों को यह चट कर जाता ।
पुतली को ज्यादा फैलाए,
दूर-दूर इसको दिख जाए ।

पीछे भी यह देखे पूरा,
इसको पकड़ न पाए जमूरा ।
जग में सभी जगह मिल जाता,
गिनती में यह घटता जाता ।

ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहाँ गए उल्लू नादान।।

4 comments:

  1. aapkii rachnaayen jab bhii laut-lautkar aatii hain man ko taazgii se bhar detii hain.

    sabhii baal-kavitaaon se aap na kewal bachchon kaa man prasann kar dete ho jabki hamaare bheetar baithe bachche ko baahar nikalne ko baadhy bhii kar dete ho.

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  2. आपकी रचनाएं जब भी लौट-लौटकर आती हैं मन को ताजगी से भर देती हैं.

    सभी बाल-कविताओं से आप न केवल बच्चों का मन प्रसन्न कर देते हो जबकि हमारे भीतर बैठे बच्चे को बाहर निकलने को बाध्य भी कर देते हो.

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  3. बहुत बढ़िया ....बाल-कविता

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  4. बहुत बढ़िया बाल-कविता| धन्यवाद|

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