प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, April 20, 2011

मेहमान / दीनदयाल शर्मा

मेहमान
 मेरे घर आया मेहमान
मानूँ मैं उनको भगवान
रोज रोटियाँ दाल बनाते
आज बने हैं पकवान।

घर की बैठक को सजाया
सबने अनुशासन अपनाया
करते भाग-भाग कर पूरे
उनके सारे फरमान।

कोई कसर रहे न शेष
अतिथि होते हैं विशेष
उनकी केवल इक मुस्काँ पर
हम हो जाते कुरबान ।।

6 comments:

  1. bahut sundar kavita.. mehmaan ke mahatwa ko batate hue...

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  2. बहुत बढ़िया कविता ..... इस मेहमाननवाज़ी का शुक्रिया....

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  3. दीनदयाल जी,
    1 मई नै म्हे हनुमानगढ पुग रहया हां।
    जद ही मेहमान नवाजी करवास्यां :)

    राम राम

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  4. मजेदार मेहमान कविता ....

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  5. मेहमान के लिए सम्मानजनक कविता है मज़ा आ गया पढ़ कर।
    कभी आइये हमारे ब्लॉग पर अपना दस्तखत करे अच्छा लगेगा।
    मेरा ब्लॉग है wwwkufraraja.blogspot.com

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  6. Deendayal ji aapki har kavita bachchon ko ek naya sandesh deti hai.saral shabdon me sahi raah dikhati hai.Mehmaan ek saraahniye kavita.

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