प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
Monday, June 20, 2011
मधुमक्खी / दीनदयाल शर्मा
मधुमक्खी / दीनदयाल शर्मा
मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम ।
मेहनत से न डरती हो तुम ।।
फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।
भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।
वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।
ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।
3 comments:
डॉ. मोनिका शर्मा
June 20, 2011 at 10:06 PM
मनमोहक कविता ....
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Chaitanyaa Sharma
June 20, 2011 at 10:22 PM
प्यारी कविता ...क्यूट फोटो
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दीनदयाल शर्मा
June 21, 2011 at 1:20 PM
Thankyou...ji..
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मनमोहक कविता ....
ReplyDeleteप्यारी कविता ...क्यूट फोटो
ReplyDeleteThankyou...ji..
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