म्हारे मन री पीड़ा
जीणौ चां'ती दामणी,
गई मौत सूं हार।
जीत दरिंदा री हुई,
मिनखपणौ लाचार।।
देख बुराई सामणै,
नां तूं निजरां फेर।
गळौ पकड़ले गरजगे,
इण में नां कर देर।।
गैंगरेप सूं भरया पड़्या,
दुनिया रा अखबार।
घर बैठ्या अफसोस करो
बारै निकळो यार।।
दिल्ली में हुई दामणी,
दरिन्दगी री शिकार।
सूत्या साहिबा सौड़ में,
अब तो जागो यार।।
घणौ करयो बण सामणौ,
पछै हुई लाचार।
मरग्यौ दीखै मानखो,
मिनख तन्नै धिक्कार।।
बीच बजारां लूट ली
अस्मत,, आपां मून।
गई बिच्यारी दामणी,
कद बणसी कानून।।
- दीनदयाल शर्मा
अध्यक्ष, राजस्थान साहित्य परिषद्,
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