प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
Wednesday, April 23, 2014
विश्व पुस्तक दिवस पर मेरी एक कविता......
किताब
सुख - दुःख में साथ,
निभाती रही किताब
बुझे मन की बाती,
जलाती रही किताब
जब कभी लगी प्यास,
बुझाती रही किताब
मन जब हुआ उदास,
हँसाती रही किताब
अँधेरे में भी राह,
दिखाती रही किताब
अनगिनत खुशियाँ,
लुटाती रही किताब..
- दीनदयाल शर्मा
2 comments:
Chaitanyaa Sharma
April 23, 2014 at 6:52 PM
बहुत सुन्दर कविता .....
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Vaanbhatt
April 25, 2014 at 3:13 PM
अति सुन्दर...खूबसूरत...
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बहुत सुन्दर कविता .....
ReplyDeleteअति सुन्दर...खूबसूरत...
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