सबकुछ दे कर आगे बढ़ गए हैं पिताजी कि पुत्र आनेवालों को सौंपता चलेगा - उसे ऋण चुकाना है अब !
यही है पिता जी की विरासत...इसे संभाल के रखना और अगली पीढ़ी को ट्रांसफर करना...अब हमारी जिम्मेदारी है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।-- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हैं कैसे नहीं पिताजी आपकी परवरिश में हैं आपकी विरासत हैं पिताजी ,आप स्वयं हैं पिताजी का अक्श।
बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
ap sabka bahut bahut dhanywaad..
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सबकुछ दे कर आगे बढ़ गए हैं पिताजी कि पुत्र आनेवालों को सौंपता चलेगा - उसे ऋण चुकाना है अब !
ReplyDeleteयही है पिता जी की विरासत...इसे संभाल के रखना और अगली पीढ़ी को ट्रांसफर करना...अब हमारी जिम्मेदारी है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हैं कैसे नहीं पिताजी आपकी परवरिश में हैं आपकी विरासत हैं पिताजी ,आप स्वयं हैं पिताजी का अक्श।
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ReplyDeleteap sabka bahut bahut dhanywaad..
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