प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Sunday, June 15, 2014

फादर्स डे पर विशेष
















फादर्स डे पर विशेष

पिताजी कहते थे
जल्दी उठो
वे खुद जल्दी उठते थे

वे कहते थे
मेहनत करो
वे खुद मेहनती थे

वे कहते थे
सच बोलो
वे खुद सच के हामी थे

वे कहते थे
ईमानदार रहो
वे खुद ईमानदार थे

मैं उनके बताए
क़दमों पर चला

आज सब कुछ है
मेरे पास .....
लेकिन पिताजी नहीं हैं..

दीनदयाल शर्मा
15 जून 2014 

6 comments:

  1. सबकुछ दे कर आगे बढ़ गए हैं पिताजी कि पुत्र आनेवालों को सौंपता चलेगा - उसे ऋण चुकाना है अब !

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  2. यही है पिता जी की विरासत...इसे संभाल के रखना और अगली पीढ़ी को ट्रांसफर करना...अब हमारी जिम्मेदारी है...

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हैं कैसे नहीं पिताजी आपकी परवरिश में हैं आपकी विरासत हैं पिताजी ,आप स्वयं हैं पिताजी का अक्श।

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  5. बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...

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