प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Tuesday, July 1, 2014

काळ रा दूहा- 3 / दीनदयाल शर्मा

खेती सगळी खूटगी, घणौ बध्यौ है घास।
खेतीखड़ रै खोरसौ, खळियौ खड़्यौ उदास।।

- दीनदयाल शर्मा

2 comments:

  1. बहुत अच्छा !
    श्री दीन दयाल जी,
    मैँ बादळी रचना पढने का बेहद मुंतज़िर हूं !
    नेट पर कहां मिलेगी ?

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