प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, October 11, 2014

गुड़िया / दीनदयाल शर्मा

अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरी एक कविता -
बालिकाओं को समर्पित ..

गुड़िया / दीनदयाल शर्मा
गुड़िया रोती ऊूँ - ऊूँ- ऊूँ
ना जाने रोती है क्यूँ
किसने इसको मारा है
या इसको फटकारा है
रोना अच्छी बात नहीं
फिर गुड़िया रोती है क्यूँ.
गुड़िया इसकी रूठ गई
या गुड़िया फिर टूट गई
टूटी को हम जोड़ेंगे
रूठी है तो रूठी क्यूँ..
गुड़िया को मनाएंगे
बार बार बहलाएंगे
कारण पूछें रोने का
गुड़िया तूं रोती है क्यूँ..
- दीनदयाल शर्मा, बाल साहित्यकार

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