प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Wednesday, September 17, 2014

फुलवारी/ दीनदयाल शर्मा











बाल कविता -

फुलवारी/ दीनदयाल शर्मा

भांत-भंतीली खुशबू प्यारी
महकी फूलों की फुलवारी

तितली फूलों पर मंडराए
भौंरे अपनी राग सुनाए
पत्ता-पत्ता हुआ हरा है
धरा हो गई हरियल सारी।

सूरज के उगते ही देखो
चिडिय़ा चहके गीत सुनाए
ओस की बूूंदों से टकराकर
कण-कण को रश्मि चमकाए

मदमाती जब चली पवन तो
महक उठी है क्यारी-क्यारी।

गेंदा और गुलाब - चमेली
सबकी खुशबू है अलबेली
जिधर भी देखो मस्ती छाई
जीव-जगत के मन को भायी

अपनी मस्ती में हैं सारे
भोली शक्लें प्यारी-प्यारी।।

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