बाल कविता -
फुलवारी/ दीनदयाल शर्मा
भांत-भंतीली खुशबू प्यारी
महकी फूलों की फुलवारी
तितली फूलों पर मंडराए
भौंरे अपनी राग सुनाए
पत्ता-पत्ता हुआ हरा है
धरा हो गई हरियल सारी।
सूरज के उगते ही देखो
चिडिय़ा चहके गीत सुनाए
ओस की बूूंदों से टकराकर
कण-कण को रश्मि चमकाए
मदमाती जब चली पवन तो
महक उठी है क्यारी-क्यारी।
गेंदा और गुलाब - चमेली
सबकी खुशबू है अलबेली
जिधर भी देखो मस्ती छाई
जीव-जगत के मन को भायी
अपनी मस्ती में हैं सारे
भोली शक्लें प्यारी-प्यारी।।
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