प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, October 25, 2014

शिशु गीत / दीनदयाल शर्मा



शिशु गीत -


घोड़ा

लकड़ी का घोड़ा
बड़ा निगौड़ा
खड़ा रहता है
कभी न दौड़ा।


रसगुल्ला

गोल मटोल रसगुल्ला
रस से भरा रसगुल्ला
मैंने खाया रसगुल्ला
अहा! मीठा रसगुल्ला।


शेर

सर्कस में देखा था शेर
बड़े रौब से चलता शेर
डर से सबका बज गया बाजा
इसीलिए वह जंगल का राजा।


चिडिय़ा और बच्चे

चिडिय़ा के दो बच्चे प्यारे
सुंदर से वे न्यारे-न्यारे
बाहर से दाने वह लाती
उन दोनों को रोज खिलाती
बच्चे बड़े हो गए दोनों
इक दिन फुर्र हो गए दोनों।


तितली

घर में बनाई क्यारी
क्यारी में लगाए पौधे
पौधों पर आए फूल
फूलों पर तितली आई
घर में खुशियां छाई।।


मटर

हरी-हरी मटर
टमाटर लाल-लाल
देखो तुम मम्मी
हमारा कमाल।


रोटी

कम गीला आटा
रोटी गोल-गोल
कितनी अच्छी बनाती हूँ
बोल मम्मी बोल।


टीवी नानी

नानी मेरी प्यारी नानी
नहीं सुनाती कोई कहानी
फिर मैं करती हूं मनमानी
टीवी बनता मेरी नानी।


कट-मट

कट-मट-लट-पट
काम कर झटपट
चीं चपड़ मत कर
कर मत खटपट।


चरक चूं

चरक चूं भई चरक चूं
दिनभर काम मैं करती हूँ
थक गई हूँ आराम करूं
कोई मुझसे लड़ता क्यूँ ।


तबड़क-तबड़क

तबड़क-तबड़क घोड़ा दौड़े
सर-सर चलती कार
रेलगाड़ी छुक-छुक चलती
हम भी हैं तैयार।


बिजली

कड़क-कड़क कर बिजली कड़के
जब होती बरसात
गड़-गड़-गड़ गिरते ओले
दिन होता चाहे रात।


आराम

कच्ची-कच्ची मक्की
पक्के-पक्के आम
खा के डकार लो
फिर करो आराम।


मेरा बस्ता

मेरा बस्ता
भारी बस्ता
उठाऊं इसको
हालत खस्ता।


घंटी

जब स्कूल की बजती घंटी
राजू रोज लेट हो जाता
मैं तो सबसे पहले आता
मैडम-सर का प्यार मैं पाता।


गुल्ली-डंडा

सारा दिन वह उधम मचाता
खेले गुल्ली-डंडा
परीक्षा में नंबर मिलता
उसको केवल अंडा।


जेल-खेल

दिन भर पढऩा
लगता जेल
डान्स करूं
या खेेलूं खेल।


नादानी

स्कूल और घर पर नहीं सिखाता
मुझको कोई गीत कहानी
किससे सीखूंगा मैं बोलो
कैसे जाएगी नादानी।


किताब

ऐसी किताब दिला दो मुझको
पढ़कर खुश हो जाऊं
अच्छी-अच्छी बातें उसकी
मैं सबको बतलाऊं।


चटोरी

छोला, भटूरा, गोलगप्पा
मैगी रोज वह खाए
जब भी मिलते दोस्त उसको
चटोरी कह कर चिढ़ाए।


मटकूराम

मटक-मटक कर चलता देखो
कैसे मटकूराम
मना कभी नहीं करता देखो
कोई कह दो काम।


टोकरी

आलू की टोकरी
गोभी का फूल
हमसे मम्मी
हो गई भूल।


गुलगुला

गुल-गुल गुलगुला
मुझको तूं खिला
खा गया गरम-गरम
उसका मुंह जला।


चीं-पीं

चीं-पीं चट्टा
नींबू खट्टा
पढ़-पढ़-पढ़
बट्टा में बट्टा।


आटा-पाटा

आटा पाटा
कर तूं टाटा
रविवार को
सैर सपाटा।


मिरची

लम्बी-लम्बी मिरची
नींबू गोल-गोल
चुप क्यों बैठा है
बोल-बोल-बोल।


मेरा तोता

मेरा तोता
कभी न रोता
दिन में जागे
रात को सोता।


लाला-लाली

लाला औ' लाली
बैठो मत खाली
पढ़ो कुछ सीख लो
या बजाओ ताली।




- दीनदयाल शर्मा,
10 / 22 , आर. एच. बी. कॉलोनी,
हनुमानगढ़ ज. 335512 , राजस्थान ,
मोब. 09414514666

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बच्चों के चित्र और शिशु गीत मन को उसी निश्छल मनोवस्था में खींच ले जाते हैं -आभार !

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  3. Bahut hi sunder rachna..padh ke man gadgad ho gya..aabhaar !!

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  4. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, प्रतिभा सेक्सना जी, आशीष अवस्थी जी, और Lekhika ' Pari M Shlok' कमेंट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.. चर्चा मंच के लिए डॉ. मयंक जी का बहुत बहुत धन्यवाद...

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