प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Thursday, November 13, 2014

चल चल चल / दीनदयाल शर्मा

हिंदी बाल गीत -


चल चल चल / दीनदयाल शर्मा

चल चल चल भई चल चल चल,
रुक ना कभी तू चलता चल।

ठहरा जल गंदा हो जाता,
उससे तू भी शिक्षा लेले
चलना ही कहलाता जीवन,
कर्म किए जा चलता चल,
इक दिन तुझको मिलेगा फल।

अपनी गाड़ी चलती जाए,
चलती का गाड़ी है नाम।
खड़ी रहे तो बने खटारा,
चलेगी तो फिर मिलेंगे दाम।
काम आज का आज करो तुम,
नहीं कहो तुम कल- कल-कल।


समय कभी नहीं रुकता देखो
चलता रहता पल-पल-पल
कितने करोड़ों दाम भी दे दो,
वापस कभी न आता कल।
समय की कीमत जानी न जिसने,
समय भी लेता उसको छल।


चल चल चल भई चल चल चल,
रुक ना कभी तू चलता चल।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (14-11-2014) को "भटकता अविराम जीवन" {चर्चा - 17976} पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    बालदिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद.. डॉ. मयंक जी..

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  2. atisundar prerak rachna

    समय कभी नहीं रुकता देखो
    चलता रहता पल-पल-पल
    कितने करोड़ों दाम भी दे दो,
    वापस कभी न आता कल।
    समय की कीमत जानी न जिसने,
    समय भी लेता उसको छल।

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    1. आपको मेरी कविता पसंद आई...
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद...
      सुनीता अग्रवाल जी...

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