प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है
Tuesday, March 24, 2015
बंदर को भायी बिल्ली / दीनदयाल शर्मा
हास्य बाल कविता-
बंदर को भायी बिल्ली / दीनदयाल शर्मा
बिल्ली को देखा बंदर ने
मन में उसके भायी
सोचा गर इससे हो जाए
झट से मेरी सगाई।
बंदर ने मम्मी-पापा से
उसकी बात चलाई
मेरी शादी कर दो उससे
बिल्ली मुझको भायी।
बंदर के मम्मी-पापा जब
पहुंचे बिल्ली के घर
बिल्ली पहले से ब्याही है
बोला उनका नौकर।।
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