प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Saturday, December 29, 2007

अक्टूबर 1997 को 
भीलवाड़ा (राजस्थान) में 
आयोजित बाल साहित्यकार 
सम्मेलन में बाएं से 
डॉ. भगवतीलाल व्यास, उदयपुर, 
डॉ.रतनलाल शर्मा, नई दिल्ली व 
दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़।

2 comments:

  1. गिद्द
    गांव के बाहर बनी
    हड्डा रोड़ी से आती
    बदबू से
    व्यथित मन सवाल करने लगा
    पहले मरे जानवरों को
    गिद्द खा जाते थे
    और पर्यावरण को
    संतुलित रखते थे,
    और आज
    गिद्द घटते जा रहे हैं.
    कहाँ चले गए गिद्द?
    मन ने ही जवाब दिया
    सब राजनीति में आ गए.
    -दीनदयाल शर्मा

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  2. खोज
    मैं कौन हूँ
    यह जानने के लिए
    मैंने
    किसी का नहीं खटखटाया
    दरवाजा
    और न ही समाधि लगाई
    किसी वृक्ष तले
    बल्कि तारे गिनते गिनते
    स्वत ही हो गया बोध
    कि
    मैं सिर्फ वोट हूँ.
    तुम वोट हो
    हम सब वोट हैं.
    यह सास्वत सत्य है
    और मैंने पा लिया है सत्य.
    -दीनदयाल शर्मा

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